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________________ ( ९० ) जिये ॥ सत्यवादी कहे भैया हूर्जे नाही खेद खिन, ज्ञेयसो विरचि ज्ञान भिन्न मानि लीजियें । ज्ञानकी शकति साधि अनुभौ दशा अराधि, करमकों त्यागिके परम रस पीजिये ॥६॥ सवैया इकतीसा - कोउ क्रूरकहे कायाजीव दोउ एक पिंड, Made avidasi जीव मरेगो । छायाको सो छल किधों. मायाको सो परपंच, कायामे समाइ फिरि कायाको न धरेगी ॥ सुधी कहे देहसों अव्यापक सदीब जीव, समोपाइ परको ममत्व परिहरेगो । अपने सुभाउ आइ धारना घरामे धाइ, आमें मगनव्हे आपा शुद्ध करेगो ॥ ७ ॥ दोहा -ज्यों तन कंचुकि त्यागसों, विनसे नांहि भुयंग । त्यों शरीरके नासतें, अलख अखंडित अंग ॥ ८ ॥ सवैया इकतीसा - कोउ दुरबुद्धि कहे पहिले न छूतो जीव, देह उपजत उपज्यो हे अब आइके । जोलों देह तोलों देहधा री फिर देह नसे, रहेगो अलख ज्योति ज्योतिमें समाइके ॥ सदबुद्धी कहे जीब अनादिको देह धारी, जब ज्ञान होइगो कवहीं काल पाइके । तबही सो पर तजि अपनो सरूप भजि, पावैगो परम पद करम नसाइके ॥ ६ ॥ सबैया इकतीसा - कोउ पक्षपाती जीव कहे ज्ञेय के आकार, परिनयो ज्ञान तातें चेतना असतहै । ज्ञेयके नसत चेतनाको नासता कारन, आतमा अचेतन त्रिकाल मेरे मत है ॥ पंडित कहत ज्ञान सहज अखंडित है, ज्ञेयको आकार धरे ज्ञेयसी बिरतहै । चेतनाके नाश होत सत्ताको विनाश होय, याते ज्ञान चेतना प्रवान जीवतत है ॥ १० ॥ सवैया इकतीसा - कोउ महा मूरख कहत एक पिंडमांहि,
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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