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(८४) दोहा-कुमती बाहिज दृष्टिसों, वाहिज़ क्रिया करंत। ... .
माने मोष परंपरा, मन में हरष धरंत ॥७० ॥ शुद्धातम अनुभो कथा, कहे समकितीकोइ।. ... .
सो सुनिके तासोंकहे, यह शिवपंथ न होइ ॥ ७ ॥ कवित्त-जिन्हके देह बुद्धि घट अंतर, मुनि मुद्रा धरि क्रिया प्रवानहि । ते हिय अंध वंध के करता, परमतत्व को भेद न जानहि ॥ जिन्ह के हिये सुमतिकी कनिका, बाहिज क्रिया भेष परमानहि। ते समकिती मोष मारगमुख, करि प्र. स्थान भवं स्थिति भानहि ॥७२॥: ....
सवैया इकतीसा-आचारिजकहे जिन बचनको विसतार, अगम अपार है कहेंगे हम कितनो । बहुत बोलबे सों न मकसूद चुप भली, बोलिये सु बचन प्रयोजनहै जितनो॥ नाना रूप जलपं सों नाना विकलप उठे, ताते जेतों का.. रिंज कथन भलो तितनो। शुद्धपरमातमको अनुभौ अभ्यास कीजें, यहे मोषपंथ परमारथ है इतनों॥७३॥ . . . दोहा-सुद्धातम अनुभौ क्रिया, सुद्ध ज्ञान दृग दौर।
मुकतिपंथ साधन वहै, वाग जाल सबऔर ॥७४॥ जगत चक्षु आनन्दमय, ज्ञानं चेतना भास । निर्विकल्प साश्वतसुथिर; कीजेअनुभौ तास।७५॥ अचल अखंडित ज्ञानमय, पूरन वीत ममत्व। .
ज्ञानगम्य बांधा रहित सो है आतम तत्व ॥ ७६ ॥ . . . इतिश्रीनाटकसमयसारविर्षे दशमसरवविसुद्धिद्वारसंपूर्ण । ...
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