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________________ ( ६९) जीव अकर्ता करमको, यह अनुभो परवान ॥६२॥ . .. . चौपाई। · । जे दुरमती विकल अज्ञानी । जिन्हिसुरीतिपररीतिनजानी । मायामगनभरमके' भरता। ते जियभावकरमकेकरता॥६॥ दोहा-जे मिथ्यामतितिमरसों, लखे नजीव अजीव ।' तेई भावित करम के, करता होइ सदीव ॥६४॥ जे अशुद्ध परिनति धरे, करे अहं परवानं । ते अशुद्ध परिनाम के, करता होइ अजान ॥६५॥ शिष्य कहै प्रभु तुम्हकह्यो, दुविधकरमकोरूप। दर्व कर्म पुद्गल मई, भाव कर्म चिद्रूप ॥६६॥ करता दरवित करमको, जीवनहोइ त्रिकाल। अबइहभावितकरमतुम, कहो कौनकीचाल ॥६७॥ करता याको कौनहै, कौन करै फल भोग। के पुद्गलं के आतमा, के दुहुको संयोग ॥६८॥ क्रियाएक करतायुगल, यों न-जिनागममांहि । 'अथवा करनी औरकी, और करै यों नांहि ॥१९॥ करे और फल भोगवे, और बने नहि एम । जो करता सो भोगता, यहे यथावत जेम ॥७॥ भाव कर्म कर्तव्यता, स्वयं सिद्ध नहि होइ। जो जगकी करनी करे, जगवासी जियसोई॥७१॥ जियंकरता जियभोगता,भावकम जियचालि। पुदगल करे न भोगवे,दुविधा मिथ्या जालि ॥७२॥. • तातें भावित करमकों, करे मिथ्याती जीव । सुख दुखं आपद-संपदा, भूजे सहज संदीव ॥ ७३॥
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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