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(४८) दृष्टिसों निरंतर विलोकै वुध, धरम अरथ काम मोक्ष निजघः टमें । साधन आराधनकी.सोज रहै जाके संग, भूलों फिरै : मूरख मिथ्यातकी अलटमें ॥ ५२. ॥.....: :
सवैयाइकतीसा-तिहूं लोकमांहि तिहूंकाल लप जीवनि कों, पूरब करम उदै आइ रस देतुहैं । कोउदीरघाउ धरै को । उ अलपाउमरै, कोउ दुखी कोउसुखी कोउसमवेतहै ॥ या.. हीमेंजीवायो याही मान्यो याहि सुखी कन्यो दुखों कन्यो एसी मूढ़ आपु मानी लेतु है । याही अहं बुद्धिसों न विलसै भरम मूल यहै मिथ्या धरम करम बंध हेतुहै ॥ ५३ ॥
सबैया इकतीसा-जहांलो जगतके निवासीजी जगत में, सबैअसहाय कोऊ काहुको न धनीहै।जैसीर पूरब करमसत्ता :: बांधिजिन, तैसी तैसी उदै में अवस्था आइ वनी हैं ॥ एते परिजो कोउ कहै कि मैं जीवावोंमारों इत्यादि अनेक विकलप बात धनी है।सोतो अहं बुद्धिसों विकल भयो तिहूंकाल, डोले.. निज आतम सकति तिन हनी है ॥ ५४॥....
सवैया इकतीसा-उत्तम पुरुषकी दशा ज्यों किसमिस दाख, बाहिज़ अभिंतर विरागीमृदु अंग है । मध्यम पुरुष ना- : रियर केसी भांति लिये, वाहिज कठिन हिय कोमल तरंग है ॥ अधम पुरुष बदरीफल समान जाके वाहिरसों दिसै न'रमाइ दिल संगहै । अधमतों अधम पुरुष पुंगीफल सम, . अंतरंग बाहिर कठोर सरवंग हैः ॥ ५५ ॥:...
सवैया इकतीसा-झीच सो कनक जाके नीचसा नरेशपद, ... मीचसी मिताई गरवाई जाके गारसी।जहरसी जोग जानि । कहरसी करामाति,हहरसीहाँस पुद्गल छवि छारसी। मालसो.