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(४१) नोवै ॥ज्ञानी क्रिया करै फल सूनी। लगैन लेप निर्जरा दूनी१९ दोहा-बधे कर्मसों मूढज्यों, पाट कीट तन पेम ।
खुलै कर्मसों समकिती, गोरख धंधा जेस ॥ २०॥ सवैया तेईसा-जे निज पूरबकर्म उदै सुख भुंजतभोग उदास रहेंगे। जे दुख में न बिलाप करें निरबैर हिये तन ताप सहेंगे॥ है जिनकेदृढ आतम ज्ञान क्रिया कारके फलंकों न चहेंगे। ते सुविचक्षन ज्ञायकहै तिनकों करता हमतो न कहेंगे ॥ २१ ॥
सवैया इकतीसा-जिनकी सुदृष्टि में अनिष्ट इष्ट दोउ सम, जिनको आचार सुविचार सुभ ध्यानहै । स्वारथको त्यागी जे लहेंगे परमारथकों, जिनके बनिजमें नफा न है न ज्यानहै । जिनकी समुझमें शरीर ऐसो मानीयतु, धानकोसो छीलक कृपानकोसोम्यानहै । पारखी पदारथ के साखी भ्रम भारथके तेई साधु तिनहीको जथारथ ज्ञान है ॥ २२ ॥
सवैया इकतीसा-जमकोसो भ्राता दुःखदाता है असाता कर्म, ताके उदै मूरख न साहस गहतुहै। सुरग निवासी भूमि वासी औ पतालवासी, सबहीको तन मन कंपत रहतु हैं। उरको उजारों न्यारो देखिये लपत भेसों,डोलतु निशंकभयो आनंद लहतु है। सहज सुबीर जाको सासुतो शरीर ऐसो, ज्ञानी जीव आरज आचारंज कहतुहँ ॥२३॥ दोहा-इह भव भय परलोक भय,मरन वेदना जात।
अनरक्षा अनगुप्त भय, अकस्मात सय सात ॥ २४ ॥ . सबैया इकतीसा-दसधा परिग्रह बियोग चिंताइहभब, दुगति गमन परलोक भय सानिये । माननिको हरन सरन भै