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________________ ( ३२ ) सवैया तेइसा-- शुद्ध सुछेद अभेद अबाधित, भेद वि ज्ञान सु तीन आरा । अंतर भेद सुभाउ विभाव करे जड़ चेतनरूप बुफारा ॥ सो जिन्हके उरमें उपज्यो न रुचै तिन्ह को परसंग सहारा । आतमको अनुभौ करि ते हरखे परखे परमातम धारा ॥ ६६ ॥ " सवैया तेइसा--जो कबहूँ यह जीव पदारथ, औसरपाइ मिथ्यात मिटावै । सम्यक धार प्रवाह बड़े गुन ज्ञान उदे. मुख ऊरध धावै ॥ तो अभिनंतर दर्वित भावित कर्म कि लेश प्रवेश न पावै । आतम साधि अध्यातम को पथ पूरण व्है परब्रह्म कहावे ॥ ७० ॥ सवैया तेईसा भेद मिथ्यात सु बेद महारस भेद विज्ञान कला जिन पाई । जो अपनी महिमा श्रवधारत, त्यागकरे बरसों ज पराई ॥ उद्धतरीति वसे जिनके घट होतु निरंतर ज्योति सदा । ते मतिमान सुवर्ण समान लगे तिनकों न शुभाशुभ काई ॥ ७१ ॥ अडिल छंद - भेदज्ञान संवरनिदान निरदोष है । सवरसों निरजरा अनुक्रम मोष है ॥ भेद ज्ञान शिवमूल जगतमहि मानिये | यदपि हेय है तदपि उपादय जानिये ॥ ७२ ॥ दोहा--भेदज्ञान तबलों भलो, जबलों मुक्ति न होय । परमज्योतिपरगटजहां, तहांविकल्प न कोय ॥ ७३ ॥ चौपाई --भेदज्ञान संवर जिन्ह पायो । सो चेतन शिवरूप कहायो ॥ भेदज्ञान जिनके घट नाहीं । ते जड जीव बँधे ॥ ७४ ॥ --भेद ज्ञान साबू भयो, समरस निर्मल नीर !
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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