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________________ ( ३०) केई अशुभ असातारूप, दुहुसों न रागन विरोध सम चेत हैं ॥ यथायोग क्रिया करै फलकीन इच्छा धरै, जीवन मुगतिको विरुदः गहिलेत हैं। यातें ज्ञानवंतकों न आश्रव कहत कोड, मुद्धतासों न्यारे भये सुद्धता समेत हैं ॥ ५८ ॥ - दोहा-जो हितभाव सुरागहै, अनहितभाव विरोध। .: .: भ्रामकभाव विमोहहै, निर्मलभाव सुबोध ॥ ५६ ॥ राग विरोध विमोह मल, एई आश्रव मूल। .... - एई कर्म पढाइ के, करै धरमकी मूल ६०॥ .... . जहां न रागादिक दसा, सोसम्यक परिनाम : . यातें सम्यकवंतको, कहो निराश्रवः नाम ॥६१॥ . . सवैया इकतीसा--जे कोई निकट भब्य रासी जगवासी जीव, मिथ्या मतभेद ज्ञान भाव परिनये हैं। जिन्हकी सु. दृष्टि में न राग दोष मोह कहूं, विमल विलोकनि में तीनो जीति लये हैं ।। तजि परमाद घट सोधि जे निरोधि जोग, शुद्ध उपयोगकी दशामें मिलिगये हैं। तेई बंधपद्धति वि: डारि परसंग डारि आपुमें मगनव्है के.आपुरूप.भयेहैं।६२॥ सवैया इकतीसा-जेते जीव पंडित खयोपशमी उपशमी तिन्हकी अवस्था ज्यों लुहारकी संडासी है। छिन आग . मांहि छिन पानिमांहि तैसे एउछिन में मिथ्यात छिन ज्ञान कला भासी है ॥ जोलोंज्ञान रहै तोलों सिथिल चरन मोह जेसे कीले नगकी सगति गति नासीहै। आवत मिथ्यांत तव नानारूप बंध करै जो उकीले नागकी प्रकृतिपरगासीहै।६३॥ दोहा--यह निचोर या ग्रंथको, कहै परमरस पोष । .... ......तजै शुद्ध नयबंध है, गहै शुद्धनय मोष ॥४॥
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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