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________________ (२४ ) प्रगटतातें,अनुभौ विराजमान अनुभौ अदोपहै। अनुभौप्रधान । भगवान पुरुष पुरान,ज्ञानऔ विजानधन महा सुख पोपहै ।। . परम पवित्र योंही अनुभौ अनंत नाम, अनुभौ विना न कहो और ठोर मोष है ॥ २६ ॥ ... . __ सवैया इकतीसा-जैसे एक जल नाना रूप दरवानुयोग, भयो बहु भांति पहिचान्यो न परतुहै । फिरि काल पाई.. दरबानुयोग दूरि होतु, अपने सहज नीचे मारग ठरतु है। तैसे यह चेतन पदारथ विभावत्तासों, गति योनि भेष भव भावर भरतु है । सम्यक सुभाइ पाइ अनुभौके पंथ धाई, वंधकी जुगती सानि सुगति करतु है ॥३०॥ दोहा-निशिदिन मिथ्या भावबहु,धरौमिथ्यातीजीव ।।... ताते भावित करमको, करता कयो सदीव ॥३१॥ चौपाई-फर करमसोई करतासाजोजानसोजाननहारा॥ . . जोक नहिजानै सोई।जानै सो करतानहिहोई॥३२॥ .. सोरठा-जानमिथ्यास न एक, नहि रागादिक ज्ञानमहि । __'ज्ञानकरम अतिरेक, जो ज्ञाता करतानहीं ॥३३॥ छप्पय छन्द--करमपिंड अरु राग, भाव मिलि एक होहि नहिं । दोऊ भिन्न स्वरूप, बसहिदोऊन जीव महि ।। करम पिंड पुदगल विभाव रागादि मूढ भ्रम । अलखं एक पुद्गल : अनंत, किम धरहि प्रकृति सम । निज निज विलास युक्त जगत महि जथा-सहज परिनमहि तिमः । करतार जीवजड . .रमको, मोहविकल जन कहहि इम ॥ ३४॥ ___ छप्पय छंद-जीव मिथ्यात न करै भाव नहि धरैः । मल । जान २ रसरमै, होइ करमादिक पुदंगल । असंख्या
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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