________________
अर्थ-जीव अर देह एक क्षेत्रावगाही है सो पृथक् कैसे समझिये तेऊपर दृष्टांत कहे हैजैसे सोनेके म्यानमें रखी तलवारकू, लोक सोनेकी तलवार कहे है । परंतु जब म्यानते निराला देखे, तब सर्वलोक लोहेकी तरवार कहे है तैसे देहमें अंतरात्मा है सो जानना ॥ ७ ॥
॥ अव निश्चय अर व्यवहार वस्तु विचार कथन ॥ दोहा ।।वरणादिक पुद्गल दशा, धरे जीव बहु रूप । वस्तु विचारत करमसों, भिन्न एक चिद्रूप 10
अर्थ-व्यवहार नयते बाह्यात्मा अर अंतरात्मा कहिये है परंतु निश्चय नयते सो परमात्मा है ऐसा वस्तूके स्वरूपका विचार करके समझावे है--संसारीजीव है सो कर्मके आधीन हुवा, नाना प्रकारके 15/देहरूप धारण करे है । पण वस्तु स्वरूपका विचार करिये तो, कर्मते पृथक् है एक चैतन्यरूप है ॥८॥
॥ अव व्यवहारको दृष्टांत कथन ॥ दोहा.॥ज्यौं घट कहिये घीवको, घटको रूप न घीव, । सौं वरणादिक नामसों जडता लहे न जीव ॥5 Mall अर्थ-व्यवहारमें जैसे मृत्तिकाके घडेवू घृतके संबंधतै घृतका घडा कहेहै परंतु घडा है सो कदाचित् |
घृतका नहिहै मृत्तिकाको ही है । तैसे जीवनूं देहके संबंधसे छोटा बडा काला अर गोरा इत्यादिक नाम । करि कहे है, परंतु आत्मा देहरूप नहि होय है देहादिकते पृथक्ही है सोजानना ॥ ९ ॥
॥ अव आत्माका साक्षात् स्वरूप कथन ॥ दोहा ।निराबाद चेतन अलख, जाने सहज सुकीव । अचल अनादि अनंत नित, प्रगट जगतमें जीव १०/5।। || अर्थ-कैसा है आत्मा ? जाका कोई रीतीसे अनंतकालमें नाशनही ताते निराबाध है चेतना है | ताते चैतन्य है इंद्रियद्वारा दिखे नही ताते अलख है, आपने स्वभावळू आपही जाने है ताते स्वकीय है।
GEHIGARDOSEALISEEREIGEISHERREIROSLIDES