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________________ - समय ॥२२॥ DROCESS ॥ अब ऐसी पिछान अनुभव विना न होय, तातै अनुभव प्रशंसा कथन करे है ॥ कवित्त ॥ जब चेतन संभारि निज पौरुष, निरखे निज दृगसों निज मर्म ॥ तब सुखरूप विमल अविनाशिक, जाने जगत शिरोमणि धर्म ॥ अनुभव करे शुद्ध चेतनको, रमे खभावमें वमे सब कर्म ॥ इहि विधि सधे मुकतिको मारग, अरु समीप आवे शिव सर्म ॥ ५॥ . अर्थ-ये चेतन (आत्मा) है सो जब अपने पुरुषार्थ ( पराक्रम ) कू करे, अर ज्ञान नेत्रते अपना ॐ मर्म (चेतनपणा स्वस्वभाव) • देखे । तब आपनो स्वधर्म (स्वस्वभाव ) सोख्यरूप जो निर्मलपणा 8 तथा अविनाशीपणा, अर जगत् शिरोमणीपणाको जाने है । येही अनुभव (निःसंदेह यथार्थ ज्ञान ) ₹ है सो चैतन्यको शुद्ध करे है, अर येही अनुभव है सो आपने स्वस्वभावमें रमे है अर सर्व कर्म• दूर हैं करे है। इस प्रकार अनुभवते मुक्तिका मार्ग जो साधनकरे है, तिसके निकट मोक्ष सुख आवे है ॥५॥ ॥ अव अनुभवकी प्रशंसा कथन ॥ दोहा॥वरणादिक रागादि जड, रूप हमारो नांहि । एकब्रह्म नहिदूसरो, दीसे अनुभव मांहि ॥ ६॥ ॐ अर्थ-ये देहमें जे स्पर्श रस गंध अर वर्ण तथा रागद्वेषादिक है तेतो जड है, मेरा आत्मरूप नही 8 मेरारूप तो चेतन है । ताते मेरे अनुभवज्ञानमें एक ब्रह्म (आत्मा) ही दीखे है, अन्य दूजा जो हूँ ६ पुद्गलका विकार है सो पर रूप है ते मेरे स्वअनुभवमें दीखे नही ॥ ६॥ ॥ अव वस्तु विचार कथन ॥ दोहा ।खांडो कहिये कनकको, कनक म्यान संयोग । न्यारो निरखत म्यानसों, लोह कहे सबलोग ७ ॐ PARRORISTRICROGRAMROK OSE REISEOSTALI PROSAKSOFOROSKOOL ॥२२॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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