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________________ चढे परंतु उपशमश्रेणीका स्पर्श होतेही जीव तहांसे अवश्य गिर पडे अर जे गुण प्रगटेथे ते सर्व रद्द करे । सो ग्यारवा उपशांत मोह गुणस्थान है इहां पर्यत उपशमकी सरहद है ॥ ९९ ॥ ऐसे एकादशवे उपशांत मोह गुणस्थानका वर्णन समाप्त भया ॥११॥ ॥ अथ द्वादशम क्षीणमोह गुणस्थान प्रारंभ ॥ १२॥ चौपई।' केवलज्ञान निकट जहां आवे । तहां जीव सब मोह क्षपावे ॥ प्रगटे यथाख्यात परधाना । सो द्वादशम क्षीण गुण ठाना ॥ १०॥ | अर्थ-जो मुनी सर्व मोहनीय कर्मका क्षय करे । अर जहां यथाख्यात चारित्र प्रगटे है तथा 16 केवलज्ञान अंतर्मुहूर्तमें होनेवाला है सो बारवा क्षीणमोह गुंणस्थान है ॥ १०॥ ॥ अव छठेते वारवे गुणस्थान पर्यंत उपशमकी तथा क्षायककी स्थिति कहे है ॥ दोहा ।षट साते आठे नवे, दश एकादश थान । अंतर्मुहूरत एकवा, एक समै थिति जान॥ १०१॥ क्षपक श्रेणी आठे नवे, दश अर वलि बारथिति उत्कृष्ट जघन्यभी, अंतर्मुहूरत काल ॥१०२॥ क्षीणमोह पूरण भयो, करि चूरण चित चाल। अब संयोग गुणस्थानकी, वरणूंदशा रसाल॥१०३॥ al अर्थ छठे, सातवे, आठवे, नववे, दशवे, अर ग्यारवे, इन ६ गुणस्थानकी उपसमश्रेणीके अपेक्षा उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्तकी है । अर जघन्य स्थिती एक समयकी है ॥ १०१॥ आठवे, नववे, दशवे, ग्यारवे, अर बारवे, इन ५ गुणस्थानकी क्षायक श्रेणीके अपेक्षा उत्कृष्ट अर जघन्य स्थिति अंतमुहूर्तकी है ॥ १०२ ॥ ऐसे मोहमय जे चित्तकी चाल ( वृत्ती ) है तिस चित्त वृत्तीका चूर्ण करके बारवे क्षीणमोह गुणस्थानका वर्णन संपूर्ण भया ॥ १२ ॥ **FOCUSESEISOSISKOK** STORAGARS
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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