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________________ अ०१३ हूँ चारित्र, मोहनीय कर्म• क्षय करनेका कारण ऐसा जो चारित्रका तृतीय अनिवृत्ति करण (शुद्ध परि णामकी स्थिरता ) करे जब चारित्र मोहनीय कर्मका बहुत क्षय होय, तब परिणामते चढे पण उलट ११४५॥ - नीचेके गुणस्थान नहि आवे सो नवमो अनिवृत्ति करण गुणस्थान है ॥ ९६ ॥ ऐसे नववे अनिवृत्ति २ करण गुणस्थानका वर्णन समाप्त भया ॥ ९॥ ' ' ॥अथ दशम सूक्ष्म सांपराय गुणस्थान प्रारंभ ॥१०॥ चौपई ।कहूं दशम गुणस्थान दु शाखा । जहां सूक्षम शिवकी अभिलाखां ॥ सूक्षम लोभ दशा जहां लहिये । सूक्षम' सांपराय सों कहिये ॥ ९७॥ है अर्थ-आठवे गुणस्थानमें जैसी उपशम अर क्षपक श्रेणी है तैशी नववे अर दशवे गुणस्थानमेंहं W दोय दोय श्रेणी हे । जिस मुनीका चारित्र मोहनीय कर्मका बहुतसा क्षय हुवा है अर सूक्ष्म लोभ ( मोक्ष पदकी इच्छा ) है सो दशवा सूक्ष्म सांपराय गुणस्थान है ॥ ९७ ॥ ऐसे दशवे सूक्ष्म सांपराय गुणस्थानका वर्णन समाप्त भया ॥ १०॥ ॥अथ एकादशम उपशांत मोह गुणस्थान प्रारंभ ॥११॥चौपई ॥ दोहा अब उपशांत मोह गुणठाना । कहों तासु प्रभुता परमाना॥ . जहां मोह उपसममें न भासे । यथाख्यात चारित परकासे ॥ ९८॥ १ जहां स्पर्शके जीव गिर, परे करे गुण रद्द । सो एकादशमी दशा, उपसमकी सरहद्द ॥९९॥ * अर्थ-अब ग्यारवे उपशांत मोह गुणस्थानका पराकम कहूंहूं । जो मुनी यथाख्यात चारित्र धारे * है ताते सर्व मोहनी कर्म उपशमी जाय अर उदयमें नहि दीसे है ॥ ९८ ॥ सो मुनी उपशमश्रेणी ANGRRENANCIENTREERe%-1-ALNECRECRUCIEN EXA%-05962-% % % % %AGAR ॥१४५॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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