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________________ समयः ॥अथ श्रीसमयसार नाटकको द्वितीय अजीवद्वार प्रारंभ ॥२॥ जीवतत्व अधियार यह, प्रगट कह्यो समझाय। अब अधिकार अजीवको, सुनो चतुर मनलाय ॥१॥ Ma: अर्थ-जीव तत्वका जैसा स्वरूप लक्षण अर गुण है, तैसा इस प्रथम अधिकारमें समुझाय करि है कह्यो । अब दूजे अधिकारमें अजीव तत्वका स्वरूप कहूं हूं, सो चतुर लोको चित्त देइके तुम सुनहूं ॥१॥है ॥ अव ज्ञान अजीवकू पण जाने है तातै संपूर्ण ज्ञानकी अवस्था निरूपण करे है ॥ सवैया ३१ सापरम प्रतीति उपजाय गणधरकीसी, अंतर अनादिकी विभावता विदारी है ॥ भेदज्ञान दृष्टिसों विवेककी शकति साधि, चेतन अचेतनकी दशा निखारी है। करमको नाशकरि अनुभौ अभ्यास धरि, हियेमें हरखि निज उद्धतासंभारी है ॥ है अंतराय नाश गयो शुद्ध प्ररकाश भयो, ज्ञानको विलास ताकों वंदना हमारी है॥२॥ अर्थ-ज्ञानका विलास कैसा है सो अनुक्रम कहे है-प्रथम तो गणधरके समान तत्त्वकी दृढप्रतीति उत्पन्न करे है, अर अंतरंगमें अनादिकी विभाव ( रागादिक ) अर स्वभाव (ज्ञानादिक) इनकी एकता थी सो विदारण करे है।नंतर भेदज्ञान दृष्टीसे जड तथा चेतन इनके भेदरूप जो विवेक तिस विवेकके है ६ शक्तिकू साध्य करे है, अर चेतन जो अपना आत्मा तिसमें जो अचेतनकी रीत थी तिसकू छोड दे है। है पीछे अनुभवका अभ्यास कर गुणश्रेणीको धर क्षणक्षणे कर्मकी निर्जरा करने लगजाय है; अर हृदयमें , हर्षधर आपके स्वशक्तीकी उत्कृष्टता संभारे है । ऐसे कार्य करते अर अंतराय कर्मका नाश होते शुद्ध परमात्माका प्रकाश ( केवलज्ञान प्राप्त ) होय है, ऐसो क्रमे क्रमे करी ज्ञानको 'विलास प्राप्त भयो है । ॐ तिसको हमारी वंदना है ॥२॥ EDIESELEC%9EGORIESCRECRA%ER: २१॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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