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________________ ॥ अथ प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान प्रारंभ ॥ १ ॥ दोहा ॥ वरने सब गुणस्थानके, नाम चतुर्दश सार । अव वरनों मिथ्यातके, भेद पंच परकार ॥ ९ ॥ अर्थ — ऐसे चौदह गुणस्थानके, सार्थक नाम वर्णन करे । अब प्रथम मिध्यात्व गुणस्थानमें पंच प्रकार (भेद ) है तिनका वर्णन कहूंहूं ॥ ९ ॥ ॥ अव मिथ्यात्व गुणस्थानमें पंच प्रकार है तिसके नाम कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ प्रथम एकांत नाम मिथ्यात्व अभि ग्रहीक, दूजो विपरीत अभिनिवेसिक गोत है ॥ तीजो विनै मिथ्यात्व अनाभिग्रह नाम जाको, चौथो संशै जहां चित्त भोर कोसो पोत है ॥ पांचमो अज्ञान अनाभोगिक गहल रूप, जाके उदै चेतन अचेतनसा होत है ॥ येई पाँचौं मिथ्यात्व जीवको जगमें भ्रमावे, इनको विनाश समकीतको उदोत है ॥१०॥ अर्थ — एकांत. पक्षका ग्राही प्रथम मिथ्यात्व है तिसका नाम अभिग्रहिक है, विपरीत पक्षका ग्राही | दूजा मिथ्यात्व है तिसका गोत (नाम) अभिनिवेशिक हैं । विनयपक्षका ग्राही तीजा मिथ्यात्व है तिसका नाम अनाभिग्राहिक है, भ्रमरूप चोथो मिथ्यात्व है तिसका नाम संशय मिथ्यात्व है। अज्ञान गहलरूप पांचवा मिध्यात्व है तिसका नाम अनाभोगिक है, इस अज्ञान पणाते जीव बेशुद्ध होय है । ये पांचौं | मिध्यात्व जीवकूं जगतमें भ्रमावे है, इस पांचू मिथ्यात्वका नाश होय तब सम्यक्त प्राप्त होय है ॥१०॥ ॥ अव पांचौं मिथ्यात्वका जुदा जुदा स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥ जो एकांत नय पक्ष गंहि, छके कहावे दक्ष । सो इकंत वादी पुरुष, मृषावंत परतक्ष ॥ ११ ॥ ग्रंथ उकति पथ उथपे, थापे कुमत स्वकीय। सुजस हेतु गुरुता गहे, सो विपरीति जीय ॥ १२ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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