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________________ समय- ॥१३॥ " नियत एक व्यवहारसों,जीव चतुर्दशःभेद । रंग योग बहु विधि भयो ज्यों पट सहज सुपेद ॥ ७॥ सार अ०१३ " अर्थ-ऐसे विचार करके, संक्षपते गुणस्थानके चीजकू बनारसीदास वर्णन करे है । ते वर्णन है। मोक्ष मार्गका कारण अर मोक्ष मार्गकी खोज ( पिछान ) है-॥ ६॥ निश्चयते जीव एकरूप है, अर ॐ व्यवहारते 'जीव चौदा भेदरूप है । जैसे वस्त्र : स्वाभाविक सुपेद है परंतु रंगके संयोगते बहुत ॐ प्रकारके होय है ॥ ७॥ . ॥ अव जीवके जे चतुर्दश गुणस्थान है तिनके नाम कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥प्रथम मिथ्यांत दूजो सासादन तीजो मिश्र, चतुरथ अव्रत पंचमो व्रत रंच है ॥ छट्टो परमत्त सातमो अपरमत्त नाम, आठमो अपूरव करण सुख संच है। नौमो अनिवृत्तिभाव दशम सूक्षम लोभ, एकादशमो सु उपशांत मोह वंच है॥ द्वादशमो क्षीण मोह तेरहो संयोगी जिन, चौदमो अयोगीजाकी थीति अंकपंच है। * अर्थ-प्रथम गुणस्थानका नाम मिथ्यात्व है ॥ १॥ दूजे गुणस्थानका नाम सासादन है ॥ २॥ 5 तीजे गुणस्थानका नाम मिश्र है ॥ ३ ॥ चौथे गुणस्थानका नाम अविरत है ॥ ४ ॥ पांचवें गुणस्था६ नका नाम अणुव्रत है ॥ ५॥छट्टे गुणस्थांनका नाम प्रमत्त (महाव्रत) है ॥ ६॥ सातवे गुणस्थानका नाम अप्रमत है॥ ७॥ आठवे गुणस्थानका नाम अपूर्व करण सुख संचय है ॥ ८॥ नववे गुणस्थानका । नाम अनिवृत्ति करण भाव है ॥ ९॥ दशवे गुणस्थानका नाम सूक्ष्म लोभ है ॥१०॥ ग्यारवे गुणस्थानका नाम उपशांत मोह है ॥ ११ ॥ बारवे गुणस्थानका नाम क्षीण मोह है ॥ १२॥ तेरवे गुणस्थानका नाम ॥१३२|| 5 सयोगी जिन है ॥ १३ ॥ चौदवे गुणस्थानका नाम अयोगी जिन है ॥१४॥ इस चौदवे गुणस्थानकी 8 स्थिति पंच हस्व स्वर. ('अ इ उ ऋ ल) उच्चारवेळू जितना समय लागे तितनी है ॥ ८ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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