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________________ H OSAIGOS - OSIGURISMOS ॥ अव सत्ताके अंशमें जीव है इस वारवे नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥- .. .. कोउ महा मूरख कहत एक पिंड मांह, जहांलों अचित चित्त अंग लह लहे है ॥ जोगरूप भोगरूप नानाकार ज्ञेयरूप, जेते भेद करमके तेते जीव कहे है ॥ मतिमान कहे एक पिंड मांहि एक जीव, ताहीके अनंत भाव अंश फैलि रहे है। पुद्गलसों भिन्न कर्म जोगसों अखिन्न सदा, उपजे विनसे थिरता खभाव गहे है ।।२५||७| को अर्थ-कोई महा मूढ कहें-एक देहमें, जबतक चेनन अर अचेतन पदार्थ के विकल्प (तरंग) ऊठे है। तबतक जोगरूप परिणमे सो जोगी. जीव अर भोगरूप परिणमे सो भोगी जीव ऐसे नाना प्रकार ज्ञेयरूप जितने क्रियाके भेद होय है, तितने जीवके भेद एक देहमें उपजे, है । तिनकू मतिमान कहे। हूँ एक देहमें एकही जीव है, पण तिस जीवके ज्ञान परिणामकरि अनंत भावरूप अंश फैले है । ये जीव देहसों भिन्न है अर कर्मयोगसे रहित है, तिस जीवमें सदा अनंतभाव उपजे है अर अनंत भाव । विनसे है परंतु जीव तो सदा स्थीर स्वभावही धारण करे है ॥ २५॥ , ॥ अब जीव क्षणभंगुर है इस तेरवे नयका स्वरूप कहे है ॥ ३१ सा ॥है - कोउ एक क्षणवादी कहे एक पिंड माहि, एक जीव उपजत एक विनसत है ।। |". जाही समै अंतर नवीन उतपति होय, ताही समै प्रथम पुरातन वसत है ॥ सरवांगवादी कहे जैसे जल वस्तु एक, सोही जल विविध तरंगण लसत है॥ - तैसे एक आतम दरख गुण पर्यायसे, अनेक भयो . एकरूप दरसत है ॥२६॥ cho ghe che pro *
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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