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________________ *%**. 6 जीव एक था ताते पूर्वे देख्याथा ताका स्मरण भया। एक जीवका देख्या सो दूसरे जीवकू स्मरण नहि होयगा ॥ ३२ ॥ जब यह जिनमतका योग्य दृष्टांत सुना, तब बौद्धमतका क्षणिक विचार था सो नष्ट | भया अर जिनराजने जो आत्माका स्थिरपणा कहा सो बौद्धमतीने मान्य कीया ॥ ३३ ॥ ॥ अव वौद्धमती एकांत पक्ष करे है तिसका कारण कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥एक परजाय एक समैमें विनसी जाय, जि परजाय दूजे समै उपजति है ॥ ताको छल पकरिके बोध कहे समै समै, नवो जीव उपजे पुरातनकी क्षति है । तातै माने करमको करता है और जीव, भोगता है और वाके हिये ऐसी मति है। परजाय प्रमाणको सरवथा द्रव्य जाने, ऐसे दुरबुद्धिकों अवश्य दुरगति है ॥३४॥ अर्थ-द्रव्यकी पर्याय क्षणक्षणमें बदले है-प्रथम समयमें जो पर्याय है सो नाश पावे है, अर दूसरे समयमें दूसरी पर्याय उपजे है ऐसे सिद्धांतका वचन है । इस पर्यायके वरूपकू बौद्धमतीने जीव समझा है, अर क्षणक्षणमें नवा जीव उपजे है अर पुराने जीवका नाश पावे है ऐसे कहे है। तिस कारणते कर्मका कर्ता एक जीव, अर तिस कर्मके फलका भोक्ता दूसरा जीव होय है ऐसी मति बोडके हृदयमें हुई है। अर द्रव्यके पर्यायकू सर्वथा द्रव्य जाने है, ऐसे अज्ञानीदुर्मती अवश्य मांस 51 || आहारादि खोटी क्रिया करके दुर्गतीके पात्र होय है ॥ ३४ ॥ ॥ अव दुर्बुद्धीका अर दुर्गतीका लक्षण कहे है ॥ दोहा॥कहे अनातमकी कथा, चहेन आतम शुद्धि । रहे अध्यातमसे विमुख, दुराराध्य दुर्बुद्धि ॥३५॥ ||दुर्बुद्धी मिथ्यामती, दुर्गति मिथ्याचाल । गहि एकंत दुर्बुद्धिसे, मुक्त न होई त्रिकाल ॥३६॥ 3 6*SSOSLASHESHIROSESSENG -
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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