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________________ समय EUROLOGI ॥८६॥ ... . . ॥ अव प्रमादका अर अप्रमादका स्वरूप कहे है ॥दोहा॥५ ता कारण जगपंथ इत, उत शिव मारगजोर। परमादीजग• दुके, अपरमाद शिवओर ॥३९॥ तु जे परमादी आळसी, जिन्हके विकलप भूर। होइ सिथल अनुभौविषे, तिन्हको शिवपथदूर ॥४॥ है जे परमादी आळसी ते अभिमानी जीव ।जे अविकलपी अनुभवी, ते समरसी सदीव ॥४१॥5 ॐ जे अविकलपी अनुभवी, शुद्ध चेतनायुक्त । ते मुनिवर लघुकालमें, होइ करमसे मुक्त ॥ ४२ ॥ ६ अर्थ-प्रमाद है सो संसारका मार्ग है, अर अप्रमाद है सो मोक्षका मार्ग है । ताते जे प्रमादी है ६ ६ ते संसारमार्गकू चले है अर अप्रमादी है सो मोक्षमार्ग• चले है ॥ ३९॥ जे प्रमादी आळसी है है हूँ तिनकुं बहूत विकल्प ( भ्रम) उपजे है । अर ते अनुभवविषे सिथिल होय है ताते तिनकू मोक्षमार्ग है है अति दूर है ॥ ४० ॥ अर जे प्रमादी आळसी है ते अहंबुद्धी जीव है । अर जे विकल्प (प्रमाद) है रहित आत्मानुभवी है ते समरसी जीव है ॥४१॥ जे विकल्परहित अर आत्मानुभवी है ते शुद्ध चेतना (ज्ञान अर दर्शन) युक्त है । सो रमरसी मुनीअल्प कालमें कर्मरहित होय मोक्षकू जायहै ॥४२॥ ॥ अव अहंबुद्धीका अर ज्ञानीका स्वरूप दृष्टांतसे कहे है । कवित्त ॥-. जैसे पुरुष लखे पहाढ चढि, भूचर पुरुष तांहि लघु लग्गे ॥ भूचर पुरुष लखे ताको लघु, उतर मिले दुहको भ्रम भग्गे ॥. तैसे अभिमानी उन्नत गल, और जीवको लघुपद दग्गे ॥ अभिमानीको कहे तुच्छ सब, ज्ञान जगे समता रस जंग्गे ॥ ४३॥ अर्थ-जैसे कोई पहाड ऊपर चढ़े मनुष्यकू तलाटीका मनुष्य छोटासा दीखे है। अर तलाटीके 5 RECEIGANGANGANAGAR OSLO OGŁOSZLOGOS ॥८६॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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