SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REISESEISMOGOSTOSKORISTISOSA तहां शुभ क्रिया नहि है। शुभ क्रिया है सो कर्मबंध है ते संसारका कारण है, अर शुद्ध आत्माका अनुभव है सो शुद्धोपयोग है ते मोक्षका कारण है ॥ ३४ ॥ ॥ अव शुभ क्रिया करे ते प्रमादी कहावे है सो कहे है ॥ चौपई ॥इहि विधि वस्तु व्यवस्था जैसी। कही जिनेंद्र कही मैं तैसी॥ जे प्रमाद संयुत मुनिराजा । तिनके शुभाचारसों काजा ॥३५॥ जहां प्रमाद दशा नहि व्यापे। तहां अवलंबन आपो आपे ॥ ता कारण प्रमाद उतपाती। प्रगट मोक्ष मारगको घाती ॥ ३६॥ al अर्थ-इस प्रकार आत्मद्रव्यका स्वरूप जैसा जिनेंद्र कह्या है तैसाही मैं परमागमकू देखि कह्या है। जे मुनि प्रमादी है ते शुभ क्रिया प्रवर्ते है॥३५॥ अर जहां प्रमादकी दशा नहि व्यापे है तहां अपने । आत्माका अनुभव आपही करे है । ताते प्रमादकी उत्पत्ति है सो प्रत्यक्ष मोक्षमार्गकी घातक है ॥३६॥ जे प्रमाद संयुक्त गुसांई । उठहि गिरहि गिंदुकके नाई ॥ जे प्रमाद तजि उद्धत होई। तिनको मोक्ष निकट द्विग सोई॥ ३७॥ घटमें है प्रमाद जब तांई । पराधीन प्राणी तव ताई ॥ जब प्रमादकी प्रभुता नासे । तव प्रधान अनुभौ परकासे ॥३८॥ अर्थ-जे प्रमादयुक्त मुनि है ते गिदड समान उडे है अर पडे है । अर जे प्रमादकू छोडकर शुद्ध आत्माका अनुभव करे है तिनके निकट मोक्ष है ॥ ३७ ॥ जबतक हृदयमें प्रमाद है तबतक प्राणी पराधीन है । अर जब प्रमाददशाकों छोडे है तब आत्माके अनुभवका प्रकाश होय है ॥ ३८॥ -
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy