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________________ समय॥३॥ 1-A-4-STS9E%ESREERESORRECORRORMER सत्ताको स्वरूप मोख सत्ता भूल यहै दोष, सत्ताके उलंघे धूम धाम चहूं ओर है । सार. सत्ताकी समाधिमें विराजि रहे सोई साहु, सत्ताते निकसि और गहे सोई चोर है ॥ २२ ॥ अ०.९ अर्थ जैसे दधि मंथनमें घृतकी सत्ता साधे है अथवा औषधीके क्रियाने रसकी सत्ता है, जहां ॐ तहां शास्त्रमें आत्मसत्ताहीका कथन है । ज्ञानरूपी सूर्यका उदय आत्मसत्तामें उपजे है तथा अमृत हूँ अर निधान पण सत्तामें उपजे है, अर आत्मसत्ताकू छिपावना सो सांझका अंधेर है अर है सत्ताकी मुख्यता है सो दिनकी प्रभात है । आत्मसत्ताका स्वरूप समझना मोक्षका मूल है अर, आत्मसत्ताके स्वरूपकू भूलना सो महा दोष ( रागद्वेषका) कारण है, आत्मसत्ताकू उलंघनेसे चहुओर है धामधूम ( चतुर्गतीमें भ्रमण ) होय है । आत्मसत्ताके समाधिमें (अनुभवमें ) रहे सो साहुकार हैं अर आत्मसत्ताकू छोडके पर (पुद्गल ) की सत्ता ग्रहण करे सो चोर है ॥ २२ ॥ ॥ अब आत्मसत्ताके समाधीका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जामें लोक वेदनांहि थापना उछेद नाहि, पाप पुन्य खेद नांहि क्रिया नांहि करनी॥ जामें राग द्वेष नांहि जामें बंध मोक्ष नाहि. जामें प्रभु दास नआकाश नांहि धरनी॥ जामें कुल रीत नांहि जामें हारजीत नाहि, जामें गुरु शिष्य नांहि विष नांहि भरनी॥ * आश्रम वरण नांहि काहुका सरण नाहि, ऐसि शुद्ध सत्ताकी समाधि भूमि वरनी ॥२३॥ ६ अर्थ-आत्माके सत्ता लौकिक सुख दुखकी वेदना नहीं अर स्थापना तथा उपस्थापना नहीं ६ जिसमें पापका तथा पुन्यका खेद नही अर क्रिया करणी नही । जिसमें राग तथा देश नहीं अर ६. हैं बंध तथा मोक्ष नही, जिसमें स्वामीपणा तथा दासपणा नही अर आकाश तथा धरणी नहीं । जिसमें 1
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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