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________________ | ( प्रदेश ) लोकाकाशके प्रदेश समान असंख्यात है ताते काल द्रव्यके अणूकी सत्ता असंख्यात है ॥ ४ ॥ त्रैलोक्यमें पुद्गल द्रव्यके रूपी परमाणू अनंत है ताते पुद्गल द्रव्यके परमाणू की सत्ता अनंत है ॥ ५ ॥ अर त्रैलोक्यमें जीव अनंत है तिस एक एक जीवकी सत्ता अनंत अनंत है सो न्यारी न्यारी है। ॥ ७ ॥ ऐसे छह द्रव्यकी सत्ता कही सो किसी द्रव्यकी सत्ता अन्य दूसरे किसीहू द्रव्यमें एकमेक होय मिले नही है, सब असाह्य रहे है ऐसी अनादिकी रीत है ॥ २० ॥ rs छह द्रव्य इनहीको है जगतजाल, तामें पांच जड एक चेतन सुजान है ॥ काहुकी अनंत सत्ता काहुस न मिले कोइ, एक एक सत्तामें अनंत गुण गान है ॥ एक एक सत्तामें अनंत परजाय फीरे, एकमें अनेक इहि भांति परमाण है || यह स्यादवाद यह संतन की मरयाद, यहै सुख पोष यह मोक्षको निदान है ॥ २१ ॥ अर्थ —ये छह द्रव्य कहे इनसे जगत जाल भन्या है, तिसमें पांच द्रव्य जड ( अज्ञान ) है। अर एक चेतन द्रव्य ज्ञानमय है । कोई द्रव्यकी अनंत सत्ता है पण सो दूसरे अन्य द्रव्यके सत्ता में मिले नही ऐसे जुदी जुदी अनंत सत्ता रहे है, अर एक एक सत्ता में अनंतगुण जाननेका ज्ञान है। अर एक एक सतामें अनंत अवस्था फिरे है, ऐसे एकमें अनेक भेद होय है ते प्रमाण है । यह स्याद्वादशमत है सो सत्पुरुषके अचल वचन है, यह वचन सुखका पोषक अर मोक्षका कारण है ॥ २१ ॥ ॥ अव एक जीवद्रव्यके सत्ताका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ - साधि दधिमथंनमें राधि रस पंथनमें, जहां तहां ग्रंथनमें सत्ताहीको सोर है ॥ ज्ञान मानसचा सुधानिधान सत्ताही में, सत्ताको दुरनि सांझ सत्ता मुख भोर है ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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