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________________ समय- ) अर्थ र ॥४८॥ 46+%ALMAALIGANGANAGAR ) अर्थ जैसे कमल रात्रदिन पंक (चीकड ) में रहे है, अर पंकते उत्पन्न होय है ताते पंकज सार " कहावे है तो पण कमल• चिकड लगे नही है । अथवा जैसे मंत्रवादी गारुडी होय सो आपने हातसे & अ०७ ५ सर्पकू पकड कर चवावे है, पण मंत्रके शक्तीसे सर्पका विष गारूडीके शरीरकू लगे नही है । अथवा है जैसे जीभ घृत दुग्धादिक चिकण पदार्थ भक्षण करे है पण जीभकू चिकणाई लगे नही है, अथवा जैसे सुवर्ण बहुत दिनपर्यंत पानीमें रखे तोहूं सोनेकू कीड लगे नही है । तैसे सम्यक्ज्ञानींहूं नाना प्रकारकी शुभ अर अशुभ क्रिया कर्मके उदय माफिक करे है, परंतु तिस समस्त क्रिया आपने आत्म स्वभावते भिन्न पुद्गलरूप माने है ताते ज्ञानीकू कर्मका कलंक नहि लगे है ॥५॥ ॥ अव सम्यक्ती है सो ज्ञान अर वैराग्यकू साधे है सो कहे है ॥ सवैया २३ ॥ सम्यक्वंत सदा उर अंतर, ज्ञान विराग उभै गुण धारे ॥ जासु प्रभाव लखे निज लक्षण, जीव अजीव दशा निखारे ॥ आतमको अनुभौ करि स्थिर, आप तरे अर औरनि तारे॥ - साधि खद्रव्य लहे शिव सर्मसों, कर्म उपाधि व्यथा वमि डारे॥६॥ अर्थ-सम्यक्ती है सो सदाकाल अपने अंतःकरणमें ज्ञान अर वैराग्य इस दोनुं गुणकू धारण ॐ करे है । तिस गुणके प्रभावते अपने ज्ञानचेतना लक्षण• देखे है अर ये जीव अनादि कालसे देहा8 दिक पर वस्तुकू अपना मानि रह्याथा तिस हठकू छोडे है अर पृथक् जाने है । तथा आत्माका ॥४॥ टू अनुभव करि स्वस्वरूपमें स्थिर होय संसार समुद्रते आप तिरे हैं अर सत्य उपदेश देय औरनिफूहूं, हैं तारे है । ऐसे आत्मतत्वकू साधि कर्मके उपाधिका क्षय कर सम्यक्ती मोक्षके सुखकू लहे है ॥६॥ **ॐॐॐॐॐ
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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