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________________ ॥ अव ज्ञानसे जड अर चेतनका भेद समझे तथा संवर होय है तिस ज्ञानकी महिमा कहे है ॥ २३ सा ॥ शुद्ध सुछंद अभेद अबाधित, भेद विज्ञान सु तीछन आरा॥ अंतर भेद खभाव विभाव, करे जड चेतन रूप दुफारा ॥ सो जिन्हके उरमें उपज्यो, न रुचे तिन्हको परसंग सहारा ॥ आतमको अनुभौ करि ते, हरखे परखे परमातम धारा ॥३॥ अर्थ यो ज्ञान है सो शुद्ध कहिये पर स्वभाव रहित है अर स्वछंद कहिये आपका स्वरूप बतावनहार है अर अभेद कहिये एकरूप है इसमें कोई दुसरा रूप नहि है अर अबाधित कहिये ।। प्रमाणते अर नयते बाधा नहि पावे ऐसा अखंडित है, तिस भेद ज्ञान• कमोतके समान तीक्ष्णा आरा है । तिस आराते स्वस्वभावका अर परस्वभावका भेद होय है, तथा अनादि कालते मिल्या हुवा देह । दअर आत्मा तिनका दुफारा करे है । ऐसा भेद करनहारा ज्ञान जिसके हृदयमें उपज्या है, तिस देहादिक पर वस्तुके संगका साह्य नहि रुचे है। सोही जीव आत्मानुभवके रुचि करि हर्षित होय है, तथा परमात्माके धारा ( स्वरूप ) की परिक्षा करे है ॥ ३ ॥ ॥ अब सम्यक्तके सामर्थ्यते सम्यग्ज्ञानकी अर आत्मस्वरूपकी प्राप्ति होय है सो कहे है ॥ २३ सा ॥ जो कबहूं यह जीव पदारथ, औसर पाय मिथ्यात मिटावे ॥ सम्यक् धार प्रवाह वहे गुण, ज्ञान उदै मुख ऊरध धावे ॥ तो अभिअंतर दर्वित भावित, कर्म कलेश प्रवेश न पावे ॥ '. - आतम साधि अध्यातमके पथ, पूरण व्है परब्रह्म कहावे ॥४॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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