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________________ SAARISTOCROSEXTAROGSHASTRA - हालगावे अर आत्मानुभवका अभ्यास करे है, ताते मिथ्यात्व भाव छूटे है अर चित्त समतामें लीन होय है। अर अनादि अनंत काल सूधी जिस स्वरूपमें दूजा विकल्प नहि पावे ऐसा, अचल पद अवलंबन कर अपने आत्म स्वरूपमें रमनेवाला जो रमता राम (आत्मा) है ताकू अवलोके है ॥ १४ ॥ ॥ अव आत्माका शुद्धपणा सम्यक्दर्शन है तिसकी प्रशंसा करे है ।। सवैया ३१ सा ॥जाके परकाशमें न दीसे राग द्वेष मोह, आश्रव मिटत नहि बंधको तरस है ॥ तिहं काल जामें प्रतिबिंबित अनंतरूप, आपहूं अनंत सत्ता ऽनंततें सरस है। भावश्रुत ज्ञान परमाण जो विचारि वस्तु, अनुभौ करेन जहां वाणीको परस है ।। अतुल अखंड अविचल अविनासीधाम,चिदानंद नाम ऐसो सम्यक् दरस है ॥१५॥ अर्थ-शुद्ध आत्माके प्रकाशमें राग द्वेष अर मोह तो नही दीसे है, अर आश्रव मिटे है तथा । बंधका त्रास पण नहि होय है ।अर शुद्ध आत्माके प्रकाशमें तीन काल संबंधी पदार्थोंका अनंत स्वरूप या प्रतिबिंबित होय है, तथा आपहू अनंत स्वरूप है अर सत्ता (ज्ञान) हूं अनंतते सरस (अधिक) है तिस ज्ञानके जे अनंत पर्याय है ते सर्व धर्म (गुण ) है । अर आत्मवस्तुळू भावश्रुतज्ञान प्रमाणते विचार करिये तो अनुभव गोचर है, परंतु द्रव्यश्रुत ( अक्षर रूप वाणी ) ते आत्मवस्तु अनुभवमें नहि आवे है। है। अर आत्मवस्तु अतुल अखंड अचल अविनाशी अर ज्ञानज्योतिका निधान है, तथा चिदानंद (ईश्वर) स्वरूप है ऐसा सम्यक् दर्शन है सो जानना॥ १५॥ ॥ इति श्रीसमयसार नाटकको पंचम आश्रव द्वार बालबोध सहित समाप्त भयो ॥ ५ ॥ GEOGRESSLEGESSES ** GREGORGEOUS - - - G
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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