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________________ ******ESPERES चौ०-ब्रह्मज्ञान नभ अंत न पावे । सुमति परोक्ष कहांलों धावे ॥ जिहि विधि समयसार जिनि कीनो । तिनके नाम कहूं अब तीनो ॥७॥ ॥अव त्रय कवीके नाम कहे है ।। सवैया ३१ सा॥प्रथम श्रीकुंदकुंदाचार्य गाथा बद्ध करे, समैसार नाटक विचारि नाम दयो है। ताहीके परंपरा अमृतचंद्र भये तिन्हे, संसकृत कलसा समारि सुख लयो है। प्रगटे बनारसी गृहस्थ सिरीमाल अब, किये है कवित्त हिए बोध बीज बोयो है ।। शबद अनादि तामें अरथ अनादि जीव, नाटक अनादियों अनादिहीको भयो है ॥८॥ ॥ अव सुकविका लक्षण कहे है ॥ चौपई ॥ दोहा ॥ - अब कछु कहूं जथारथ बानी । सुकवि कुकवि कथा कहानी ॥ प्रथमहि सुकवि कहावे सोई । परमारथ रस वरणे जोई ॥ ९॥ कलपित बात हीए नहि आने । गुरु परंपरा रीत वखाने । सत्सारथ सैली नहि छंडे । मृषा वादसों प्रीत न मंडे ॥ १०॥ छंद शब्द अक्षर अर्थ, कहे सिद्धांत प्रमान।जो इहविधि रचना रचे, सो है कविसु जान ॥ ११॥ ॥ अव कुकविका लक्षण कहे है ॥ चौपई ॥अब सुनु कुकवि कहों है जैसा । अपराधि हिय अंध अनेसा ॥ मृषा भाव रस वरणे हितसों। नई उकति जे उपजे चितसों ॥ १२ ॥ ख्याति लाभ पूजा मन आने । परमारथ पथ भेद न जाने ॥ SEGASSZORLUQLAR QORAS
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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