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अर्थ-निश्चय नयते भूत, भविष्य अर वर्तमानमें मैं शुद्ध चेतनमय मूर्ति हौं । परंतु पर कहिये 15|| कर्मादिक परणतिके ( उदयके ) संयोगते मेरेकू जडपणाका फैलाव भया है सो मोहकर्मका जोर है ।।
इस मोहकर्मके कारणकू पाय, यो मेरा चेतन स्व स्वरूपको छांडि देहादिक परवस्तुमें राचि रह्या है ।। जैसे धतूरके रसपान करि मनुष्य बहुत प्रकारे नाचे है । सो अब समयसार वरणन करते मेरे परम शुद्धता होऊं मोहकर्म दूरहोऊ । अर अनायास कहिए बहुत ग्रंथ पढनेका प्रयास विनाही, मेरा भ्रम जो आत्माके संग अनादिकी लगी मिथ्यात्वमें मग्नता सो मिटि जावो, ऐसे बनारसीदास कहे है ॥ ४॥
॥ अव आगम ( शास्त्र ) महात्म्य कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥निहमें एकरूप व्यवहार में अनेक, याही नै विरोधनें जगत भरमायो है। जगके विवाद नाशिवेको जिनआगम है, ज्यामें स्यादवादनाम लक्षण सुहायो है ॥ दरसनमोह जाको गयो है सहजरूप, आगम प्रमाण ताके हिरदेमें आयो है ॥
अनयसो अखंडित अनूतन ऽनंत तेज, ऐसो पद पूरण तूरत तिन पायो है ॥ ५॥ अर्थ-समस्त वस्तु निश्चयनयतें एकरूप दीखे है अर व्यवहारनयते अनेक रूप दीखे है, इस दोय नयके विरोधने जगतके जीवकू भ्रमरूप कीया है, इस भ्रमसे जगतमें वादविवाद उपजे । है । इस वाद वा भ्रमळू नाश करनेको जिनेंद्रका सिद्धांतशास्त्र समर्थ है, इसिमें स्याहादनाम उत्तम लक्षण है सो सर्व वस्तुके सत्यार्थ स्वरूप दिखावे है। परंतु जिसके दर्शनावरणीमोहकर्मका उपशम, क्षय, तथा क्षयोपशम भया होय ताके हृदयमें सहजही यह प्रमाणीक जिनआगम प्रवेश करे है । मिथ्यात्वीके 8 हृदयमें प्रवेश करे नहीं । अब स्याद्वाद जिनशास्त्र जाननहारेको कैसा फल मिले है सो कहे है जो
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