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________________ ॥ अव बावीस परिसहका विवरण कहे है । सवैया ३१ सा ॥ एकादश वेदनीकी चारित मोहकी सात, ज्ञानावरणीकी दोय एक अंतरायकी ॥ दर्शन मोहकी एक द्वाविंशति बाधा सब, केई मनसाकि केई वाक्य केई कायकी ॥ काहुकों अलप काहु बहूत उनीस ताइ, एकहि समैमें उदै आवे असहायकी ॥ . चर्या थिति सज्या मांहि एक शीत उष्ण मांहि, एक दोय होहि तीन नांहि समुदायकी ॥८८|| | अर्थ — वेदनीय कर्मके ग्यारा परिसह है अर चारित्र मोहनीय कर्मके सात परिसह है, ज्ञानावरण कर्मके दोय परिसह है अर अंतराय कर्मका एक परिसह है । तथा दर्शन मोहनीय कर्मका एक परिसह है। ऐसे सब बावीस परिसह हैं, तिस बाईस परिसहमें कित्येक परिसह मनके अर कित्येक परिसह वचनके तथा कित्येक परिसह शरीर के होय है । कोई मुनीकूं एक परिसह होय है, अर कोई मुनीकूं बहूत होयतो एक समैमें उगणीस परिसह पर्यंत होय है । गमन, बैठना, अर शयन, इन तीन परिसहमें । | कोई एक परिसह उदयकूं आवे अर दोय परिसह उदयकूं नहि आवे, तैसेही सीत अर उष्ण इन दोय परिसहमें कोई एक परिसह उदयकूं आवे अर एक परिसह उदयकूं नहि आवे, ऐसे पांच परिसहमें | दोय परिसह उदयकूं आवे अर तीन परिसह उदयकूं नही आवे, बाकीके उगणीस परिसह उदयकूं। आवे है ॥ इति परिसह वर्णन ॥ ८८ ॥ ॥ अव थविर कल्पकी अर जिन कल्पकी समानता दिखावे हे ॥ दोहा ॥ चौपाई ॥नाना विधि संकट दशा, सहि साधे शिव पंथ । थविर कल्प जिनकल्प घर, दोऊ सम निग्रंथ ॥८९॥ जो मुनि संगतिमें रहे, थविर कल्प सो जान । एकाकी ज्याकी दशा, सो जिनकल्प वखान ॥९०॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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