________________
+% A
समय
सार
अ०१३
॥१५॥
KASAIGANGANAGARICHEEGREGAO
॥ अब चारित्र कर्मके उदयते सात परिसह आवे है सो कहे है ॥ कुंडली छंद ॥... येते संकट मुनि सहे, चारित्र मोह उदोत । लज्जा संकुच दुख धरे,
नगन दिगंबर होत। गगन दिगंवर होत,श्रोत्र रति खाद न सेवे । ...त्रिय सनमुख हग रोक, मान अपमान न वेवे । थिर व्है निर्भय रहे, हैं.. .सहे कुवचन जग जेते । भिक्षुक पद संग्रहे, लहे मुनि संकट येते ॥ ८५॥ . ____ अर्थ-दिगंबर होय तब नमकी लज्जाका दुःख उपजे सो सहन करे, कर्ण इंद्रियके विषयका स्वाद नहि सेवे, स्त्रीके हावभावकू मन भूले नही, मान अपमान देखे नही, कोई भय आवेतो ध्याना
सनछोडि भागे नही, जगतके कुवचन सहे, अर भिक्षा याचनाका दुःख माने नही, ऐसे सात परिसह * ( संकट) चारित्र मोहनीय कर्मके उदयते आवे है सो मुनिराज सहन करे है ॥ ८५॥ ६ ॥ अव ज्ञानावर्णीयके २ दर्शनमोहनीयका १ अर अंतराय का १ ऐसे ४ परिसह कहे है ॥ दोहा ।हूँ अल्प ज्ञान लघुता लखे, मतिउत्कर्ष विलोय। ज्ञानावरण उदोत मुनि, सहे परीसह दोय ॥८६॥ * सहें अदर्शन दुर्दशा, दर्शन मोह उदोत । रोके उमंग अलाभकी, अंतरायके होत ॥ ८७॥ 2 अर्थ-अल्प ज्ञान होयतो लघुता सहन करे, अर बहु ज्ञान होयतो गर्व नहि करे । ऐसे अज्ञान 8 क अर प्रज्ञा (गर्व) ये दोय परिसह ज्ञानावर्णीय कर्मके उदयते आवे है सो मुनिराज सहन करे है
॥८६॥ दर्शन मोहनीय कर्मके उदयते सम्यग्दर्शनकू संकट आवेतो सम्यग्दर्शन छोडे नही, अर 8 टू अंतराय कर्मके उदयते अलाभ होयतो लाभकी इच्छा करे नही, ऐसे दर्शन मोहनीय कर्मका एक अर 8 , अंतराय कर्मका एक ये दोय परिसह मुनिराज सहन करे है ॥ ८७ ॥
%AERO-9*9ARKARIResors
१३॥