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________________ . REA बीजी महा मान रस भीजी मायामयी तीजि, चौथे महा. लोभ दशा परिग्रह पोहनी ॥ । पांचवी मिथ्यातमति छठ्ठी मिश्र.परणति, सातवी समै प्रकृति समकित मोहनी ॥ येई पट विंग वनितासी एक कुतियासि, सातो मोह प्रकृति कहावै सत्ता रोहनी ॥ ४१ ॥ sil अर्थ-अब मोहनीय. कर्मकी सात प्रकृति जिनागमकू देखिके कहूंहूं । जिसका उदय निवारनेसे सम्यग्दर्शन प्रगट होय है ॥ ३९ ॥ चारित्र मोहनीयकी पंचवीस अर दर्शन मोहनीयकी तीन ऐसे मोहनीय कर्मकी अठाईस प्रकृती है परंतु तिसिमें चारित्र मोहनीयकी चार अर दर्शन मोहनीयको 5 तीन ये सात प्रकृती है सो सम्यक्तका नाश करनेवाली है, तिनमें प्रथम प्रकृति अनंतानुबंधी ( सत्यवस्तुके अजानपणा विषयी) महा क्रोध है। दूजी प्रकृती महा मान है तथा तीजी प्रकृती महा। माया है। चौथी प्रकृती महा लोभ है सो परिग्रहळू पुष्ट करनेवाली है। पांचवी प्रकृती मिथ्यात्वबुद्धि करनेवाली है अर छठि प्रकृति सत्य अर असत्य इन दोनूंकी मिश्रबुद्धि करनेवाली है, अर सातवी प्रकृति से है सो पहिले छहूं प्रकृतीकू-छोडनेवाली सम्यक्त मोहनीयकी है । इसिमें पहली छह प्रकृती व्याघिणी समान ( सम्यक्त• भक्षण करे) है अर सातवी प्रकृति कुतिया समान डरावे (सम्यक्त• मलीन करे ) है इसिका पण भरोसा नही, मोहनीयकी सातूं हूं प्रकृति आत्माके सद्भाव (ज्ञान) रोके है ॥ ४ ॥ ॥ अव मोहके सात प्रकृतीसे सम्यक्तमें भेद होय है सो कहै है ॥ छपै छंद ॥सात प्रकृति उपशमहि, जासु सो उपशम मंडित । सात प्रकृति क्षय करन हार, क्षायिक अखंडित । सात माहि. कछु क्षपे, कछु उपशम करि रख्के । सो क्षय उपशमवंत, मिश्र समकित रस चख्के । षट्र प्रकृति उपशमे वा क्षपे, अथवा RRASASURES -
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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