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________________ समय-है कैसा है इनका जानपणा नही सो मनुष्य धर्ममूढ है, ये तीन मूढ है सो मिथ्यात्वकं पुष्ट करनेवाले सार. है। आठ गर्व, आठ मल, छह आयतन, अर तीन मूढ ऐसे सब मिलके पंचवीस दोप है ते अ०१३ ॥१३६॥ सम्यक्तछं क्षय करनेवाले है तातै इनळू त्याग करना योग्य है ॥ ३६॥ ॥ अव सम्यक्तके नाशक पांच दशा अर पांच अतिचार है सो कहे है ॥ दोहा॥ज्ञानगर्व मति मंदता, निष्ठुर वचन उदगार । रुद्रभाव आलस दशा, नाश पंच परकार ॥३७॥ दालोक हास्य भय भोग रुचि, अग्रसोच थिति मेव । मिथ्या आगमकी भगती, मृषा दर्शनी सेव॥३८॥ Fili चो-अतीचार ये पंच प्रकारा । समल करहि समकितकी धारा॥ दूषण भूषण गति अनुसरनी। दशा आठ समकितकी वरनी।। ३९ ॥ अर्थ-ज्ञानका गर्व, मतीकी मंदता, निर्दय वचन, क्रोधी परिणाम, अर आळस, इन पांचौ दशासे सम्यक्तका नाश होय है ॥ ३७॥ मेरे सम्यक्त प्रवृत्तिकुं लोक हास्य करेंगे ऐसा भय राखना, पंच।। इंद्रियोंके भोगकी रुचि राखना, आगे कैसे होयगा ऐसी चिंता करना, मिथ्या शास्त्रकी भक्ती करना, ६ अर मिथ्या देवकी सेवा ( नमस्कार वा पूजा) करना, ये पांच अतिचार दोष है ॥ ३८ ॥ इन पांच ६ अतिचार दोषोंते सम्यक्तकी उज्जल धारा मलीन होय है। ऐसे सम्यक्तके अष्ट स्वरूपका वर्णन कीया है है सो जिसकी जैसी गती होनेवाली है तैसा दूषण अथवा भूषण अर गुण अंगीकार करेगा ॥ ३९॥ १॥ अव मोहनी कर्मके सात प्रकृतीका क्षय वा उपशम होय तब सम्यक्त उपजे है सो कहे है।दोहा ॥३१ सा॥- ॥१३६॥ प्रकृति सात मोहकी, कहूं जिनागम जोय। जिन्हका उदै निवारिके, सम्यक् दर्शन होय ॥ ४० ॥ 8 चारित्र मोहकी चार मिथ्यातकी तीन तामें, प्रथम प्रकृति अनंतानुवंधी कोहनी ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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