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________________ ॥ अथ समयसार नाटक मूलग्रंथ प्रारंभः ॥ ॥ चिदानंद भगवान्‌की स्तुति ॥ मंगलाचरण ॥ दोहा ॥ - शोभित निज अनुभूति युत, चिदानंद भगवान् । सार पदारथ आत्मा, सकल पदारथ जान ||१|| | अर्थ-कैसा है चिदानंद भगवान् ? चित् ( स्व स्वभावकाही ) है आनंद जाको ताको चिदानंद कहना अथवा भगवान् कहना । सो चिदानंद जो आत्मा तो सर्व पदार्थ में सार है मुख्य है. अर सर्व पदार्थको जाननहारा ऐसा चिदानंद अनंतज्ञानवान् है तथा स्वअनुभवयुक्त महा शोभिवंत है ॥१॥ ॥ अव आत्माको वर्णन करि सिद्ध भगवान्‌को नमस्कार ॥ सवैया २३ सा ॥जो अपनी ति आप विराजित, है परधान पदारथ नामी ॥ चेतन अंक सदा निकलंक, महा सुख सागरको विसरामी ॥ जीव अजीव जिते जगमें, तिनको गुण ज्ञायक अंतरजामी ॥ सो सिवरूप वसे सिवनायक, ताहि विलोकी नमै सिवगामी ॥ २ ॥ अर्थ — कैसे है सिद्ध भगवान् ? जो अपने आत्मज्ञान ज्योतिमें आप प्रकाशमान हो रहा है, त्रैलोक्यके सर्व पदार्थ में प्रधान है, चेतना जाका लक्षण है, सदा शाश्वत है, अष्टकर्म रहित निःकलंक है, | महा सुखसमुद्र में विश्रामरूप तिष्ठे है । जगतमें जेते जीव अर अजीव पदार्थ है तिन सबके गुण जाननहारा है अर जैसे सबके देहमें आत्मा वैसे है वैसाही आत्मा है परंतु जन्ममरण रहित सिद्धरूप होय जगतके ऊपर जो मोक्षस्थान है तिसमें स्थिर वसे है, ऐसा सिद्धभगवान् है, तिनको ज्ञानदृष्टीतें देखि, शिवगामी ( शिवमार्ग में गमन करनेवाला ) भव्यजीव नमस्कार करे है ॥ २ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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