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अर्थ जो नवीन कर्म पुरानेकर्मसो मिलिकरि दृढगाठ होय अर आगेकू कर्मके वंशकी शक्ति बढावे सो बंधपदार्थ है ॥ ३३ ॥ अब मोक्षतत्व कथन ॥ ९॥ दोहा॥थितिपूरन करि जो कर्म, खिरै बंधपद भान । हंसअंस उजल करै, मोक्षतत्व सो जान ॥३॥ | अर्थ-जो कर्म अपनी स्थिति पूर्णकरि अर अपना बंधपद क्षयकरिअर हंस जो परमात्म|| स्वरूप आत्मा ताके अंशकू उज्जल करे सो मोक्षतत्त्व जानना ॥ ३४ ॥ इति नवतत्व कथन ॥
॥ अथ नाममाला सूचनिका मात्र लिख्यते ॥ अव समुच्चय वस्तुके नाम ॥ दोहा ।।भाव पदार्थ समय धन, तत्व वित्त वसु दर्व । द्रविण अर्थ इत्यादि वहू, वस्तु नाम ये सर्व ॥३५॥ | अर्थ-भाव, पदार्थ, समय, धन, तत्व, वित्त, वसु, द्रव्य, द्रविण, अर्थ, इत्यादि, बहु, ये सर्व वस्तुके नाम है ॥ ३५ ॥ अव शुद्ध जीवद्रव्यके नाम कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥
परमपुरुष परमेसर परमज्योति, परब्रह्म पूरण परम परधान है ॥ अनादि अनंत अविगत अविनाशी अज, निरढुंद मुकत मुकंद अमलान है । निरावाध निगम निरंजन निरविकार, निराकार संसारसिरोमणि सुजान है ॥
सखदरसी सरवज्ञ सिद्धस्वामी शिव, धनी नाथ ईश जगदीश भगवान है ॥ ३६ ॥
अर्थ--परमपुरुप, परमेश्वर, परमज्योति, परब्रह्म, पूर्ण, परम, प्रधान, अनादि, अनंत, अव्यशक्त, अविनाशी, अज, निद्र, मुक्त, मुकुंद, अमलान, निरावाध, निगम, निरंजन, निर्विकार, निराकार, संसारशिरोमणि, सुज्ञान, सर्वदर्शी, सर्वज्ञ, सिद्ध, स्वामी, शिव, धनी, नाथ, ईश, जगदीश, भगवान्, ॥ ३६॥ अब संसारी जीवद्रव्यके नाम कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥
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