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________________ समय॥१०॥ सार. अ०१० RSSIRSIRSANSASSASSORECASRASH हूँ जो पूर्वकृत कर्मफल, रुचिसे भुंजे नांहि । मगन रहे आठो पहर, शुद्धातम पद मांहि ॥१०॥ सो बुध कर्मदशा रहित, पावे मोक्ष तुरंत । मुंजे परम समाधि सुख, आगम काल अनंत ॥१०॥ __ अर्थ-जो पूर्वकृत कर्मका फल ( भोग अर उपभोग) रुचिसे भोगे नही । अर आठो प्रहर शुद्ध * आत्मानुभवमें रहे है ॥ १०३ ॥ सोही पंडित कर्मबंध रहित होय त्वरित मोक्ष पावे है । अर तिस ॐ मोक्षमें आगामि ,अनंतकालपर्यंत परम समाधिका सुख भोगवे है ॥ १०४॥ ॥ अव ज्ञानीकी कमे क्रमे महिमा वधे सो कहे है ॥'छप्पै छंद ॥जो पूरव कृतकर्म, विरख विष फल नहि मुंजे । जोग जुगति कारिज करंत, ममता न प्रयुंजे । राग विरोध निरोधि, संग विकलप सब छंडे । शुद्धातम अनुभौ अभ्यास, शिव नाटक मंडे । जो ज्ञानवंत इह मग चलत, पूरण व्है केवल लहे । सो परम अतींद्रिय सुखविर्षे, मगन रूप संतत रहे ॥ १०५.॥ अर्थ-जो विष वृक्षरूप पूर्व कृतकर्मके फल (भोगोपभोग)रुचिसे नहि भोगे है । अर मन वचन 6 ६ तथा काय योगके युक्तिरूप कार्य करे पण तिस कार्यमें ममता धरे नही । राग अर द्वेषका निरोधि हूँ करि मनवचनकायके सब विकल्प छोडे हैं । अर शुद्ध आत्म अनुभवका अभ्यासरूप मोक्षका खेल है हैं करे है । इस मार्गसे जो ज्ञानवंत चले है सो परमात्मारूप होयके केवल ज्ञान पावे है । अर जन्ममरणते 8 १ रहित होय मोक्षकू 'जाय है तहां अतींद्रिय सुखमें सतत मग्न रहे है ।। १०५ ॥ 1. ॥ अब शुद्ध आत्म. द्रव्यका स्वरूप वर्णन करे है ॥ सवैया ३१ सा ॥निरभै निराकूल निगम वेद निरभेद, जाके परकाशमें जगत माइयतु है ॥ RESENSORRIGARHGANGANGRESSGROGREGORIERRENESCANK ॥१०६॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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