SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -SARSANKRREEK फसैं है।शुद्धसुवर्ण समान नाटकग्रंथ निर्मल है, कृष्णके विराटरूपवत् याका अप्रमाण विस्तार है । 18/नाटकग्रंथ श्रवण करनेंतें हृदयके कपाट खुलत है ॥१५॥ अव अनुभव प्रकर्ण कथन ॥दोहा॥- कहूं शुद्ध निश्चयकथा, कहूं शुद्ध व्यवहार। मुकति पंथ कारन कहूं, अनुभौको अधिकार ॥१६॥ । अर्थ-शुद्ध निश्चय नयकी कथनी कहूंहूं अर शुद्ध व्यवहार नय ही कहूंहूं। मुक्तिके मार्गका कारणजो आत्मनुभव ताका प्रकर्ण कहूंहूं ॥ १६ ॥ अब अनुभव स्वरूप कथन ॥ दोहा॥वस्तु विचारत ध्यावते, मनपावै विश्राम । रस खादत सुख ऊपजै, अनुभो याको नाम।।१७॥ | अर्थ-वस्तुका विचारकरते अर चिंतवन करते मनविश्रामकू पावे है। अनुभव याका नाम || का है, जैसे कोऊ वस्तुका जैसा रसका खाद होय तैसें ही उस वस्तुके खानेमें रसके आस्वादका सुख उपजे है ॥ १७ ॥ अब अनुभव महिमा कथन ॥ दोहा ॥-- अनुभौचिंतामणि रतन,अनुभव है रस कूप । अनुभौ मारग मोक्षको,अनुभौ मोक्ष स्वरूप॥१०॥ B अर्थ-अनुभव है सो चिंतामणि रत्न है, अनुभव है सो रस कूप है, अनुभव है सो मोक्षका मार्ग है अर अनुभव है सो मोक्ष खरूप है ॥ १८ ॥ पुनः॥ सवैया ३१ सा ।।-- अनुभौके रसकौं रसायण कहत जग, अनुभौ अभ्यास यह तीरथकी ठौर है। अनुभौकी जो रसा कहावै सोई पोरसासु, अनुभौअधोरसासु ऊरधकी दौर है। ___अनुभौकी केलिइह कामधेनु चित्रावेलि, अनुभौको स्वादपंच अमृतको कौर है ।। __ अनुभौ करमतोरे परमसो प्रीतिजोरे, अनुभौ समान न धरम कोऊ और है ॥ १९ ॥ अर्थ-जगतके निवासी ज्ञानीजन अनुभवके रसको रसकूप कहते है, अनुभवका अभ्यास सरकॐरॐॐॐॐGE che ho pri R IRAM
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy