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________________ GARHIRASA निंदा करे साधुकी प्रशंसा करे हिंसककि, सांता माने प्रभूता असाता माने फकरी। 'मोक्ष न सुहाइ दोष देखे तहां पैठि जाइ, कालसों “डराइ जैसे नाहरसों बकरी॥ ऐसे दुरबुद्धि भूलि झूठसे झरोखे झूलि, फूलि फोरे ममता जंजीरनीसो जकरी ॥३०॥ अर्थ-दुर्बुद्धी है सो आत्मज्ञानकी बात सुनिके गरम होय कुत्ते समान भो भो करि ऊठे है, अर अपने मर्जी माफिक बात करे तो नरम होय है अर मर्जी माफक न करे तो अकड जाय है । मोक्ष-115 मार्गके साधककी निंदा करे है अर हिंसककी प्रशंसा करे है, अपने बडाई• सुख समझे है अर परके 8 बडाई• दुःख माने है । मोक्षकी रीत सुहावे नही अर दुर्गण दृष्टी पडे तो तिसळू ग्रहण करे है, अर मृत्युकुं ऐसे डरे है की जैसे बाघळू बकरी डरै है। ऐसे दुर्बुडी है सो भ्रममें भूलि झुठके मार्गमें झुल रहे है, अर डोले फिरे है पण ममतारूप बेडीते बंध्या है ॥ ३८ ॥ ... ॥ अव साद्वाद ( अनेकांत ) मतकी प्रशंसा करे है ॥ कवित्त ॥ दोहा ॥ केई कहे जीव क्षणभंगुर, केई कहे करम करतार । केई कर्म रहित नित जंपहि, नय अनंत नाना परकार । जे एकांत गहे ते मूरख, पंडित अनेकांत पख धार। जैसे भिन्न भिन्न मुकता गण, गुणसों गहत कहावे हार ॥३९॥ शायथा सूत संग्रह विना, मुक्त माल नहि होय। तथा स्यादादी विना, मोक्ष न साधे कोय ॥४०॥ अर्थ-केई [ बौद्धमती ] कहे जीव क्षणभंगुर है, केई । मिमांसकमती ] कहे जीव कर्मका कर्ता है।। केई ( सांख्यमती) कहे जीव सदा कर्मरहित है, ऐसे नाना प्रकारके अनंत नय है । जे हा एक पक्षकूही अंगीकार करे है ते तो अज्ञानी है, अर जे सर्व अनेकांत पक्षषं धारण करे है ते ज्ञानी -
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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