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________________ समय ॥१४॥ s: अर्थः सदा देहके महिमाकी कथा कहे है, अर' आत्माकी शुद्धता. नहिं जाने है। तथा सार. * आत्मविचारसेंपरान्मुख रहे है, ते दुर्बुद्धी दुराराध्य (बहुत कष्टसे समझाये तो नहि समझे) है ॥३५॥ अ०१ । मिथ्यात्वी अज्ञानी है तिसकू दुर्बुद्धी . कहिये, अर खोटी क्रिया।करे तिसकू दुर्गति कहिये । दुर्बुद्धी है है ते एकांत पक्ष ग्रहण करे है, ताते तिसकू तीन कालमें मुक्ति नहि होय है ॥ ३६ ॥ ॥अव दुर्बुद्धी भ्रममें कैसे भूले है सो तीन दृष्टांतते कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥'कायासे विचारें प्रीति मायाहीमें हारी जीति, लीये हठ रीति जैसे. हारीलकी लकरी॥ & चंगुलके जोर जैसे गोह गहि रहे भूमि, सोहि पाय. गाडे पैं न छोडे टेक पकरी॥ मोहकी मरोरसों भरमकों न ठोर पावे, घावे चहु वोर ज्यों वढावे जाल मकरी ॥ है. ऐसे।दुरबुद्धि भूलि झूठके झरोखे झूलि, फूलि फीरे ममता जंजरनीसों जकरी ॥ ३७॥ " अर्थ-दुर्बुद्धि है सो सदा देहके ममत्वमें तथा कपटके हारी जीतीमें रहे है, अर हठनूं ऐसे घरे है जैसे चील पक्षी पगमें लकडीकू. पकडे अर आकाशमें उडे तोभी छोडे नहीं। अथवा जैसे 8/ 5 चोर गोह जनावरके कंबरकू रसी बांधिके मेहल ऊपर फेके तहां गोह भूमीकू पकडे है, तैसे दुर्जनहंद ६ जो खोटी क्रिया पकडे हैं सो जादा, करे पर छोडे नहीं है । अर मोह मदिराके भ्रमसे कहां ठिकाणा । नहि पावे, ऐसे चहुवोर दौडे है, जैसे मकडी. जाल बढावती चहुओर दौडे है। ऐसे दवंडी है सो ४ भ्रमसे भूलि झुठके मार्गमें झुल रहे है, अर डोले फिरे है. पण ममतारूप बेडीते बंध्या है॥ ३७ ॥ ॥९॥ __ .. ॥ अब दुर्बुद्धीकी रीत कहे है ॥ सवैया ३१ सा-॥२ बात सुनि चौकि ऊठे वातहिसों भोंकि ऊठे, वातसों नरम होइ वातहिसों अकरी॥.
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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