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________________ जैसे काहू देशके पुरुष जैसी भाषाकहै, तैसी तिनहूक वालकान साखर " तैसे ज्यौ गरंथको अरथ कह्यो गुरु त्यौहि, मारी मति कहिवेको सावधान भई है ॥ १३ ॥ अर्थ - जैसे काहू हीराकी कनीसे कोऊ कठिन रत्न वींध राख्या होय तो पाछे उस रत्नमें सूतकी रेशमकी डोरि पोई जाय है, जो हीरेकी कनीसूं छिद्रनहीकीया होय तो उस डोरीका प्रवेश नही होयसकै । तैसे बुद्ध कहिए ज्ञानी जे श्रीअमृतचंद्रस्वामी है ते टीकाकरि नाटककूं सुगमकर दया है तातै इस टीकाके अर्थ मेरी अल्पबुद्धि हू. सूधी परनमि गई है । अथवा जैसे काहू देशके पुरुष जैसी भाषाकहै तैसी तिन्हहू के बालकनि सीखलई है । तैसे ज्यौ इस ग्रंथका अर्थ गुरु (पितादि) मोकूं का तैसे हमारी बुद्धि कहिवेकूं सावधान भई है ॥ १३ ॥ अव कवि अपने बुद्धिके सामर्थ्यको कारण भगवंतकी भक्ति है सो कहे है || ३१ सा ॥ १४ ॥ कबहू सुमति है कुमतिको विनाश करै, कवहू विमलज्योति अंतर जगति है || कवहू दयाल व्है चित्तकरत दयारूप- कबहू सुलालसा व्है लोचन लगति है || कबहू कि आरती प्रभुसनमुख आवै, कव सुभारती व्है बाहरि वगति है ॥ धरेदशा जैसी तब करेरीति तैसी ऐसी, हिरदे हमारे भगवंतकी भगति है ॥ अर्थ — कवि अपनें सामर्थ्यताका कारण कहे है, हमारे हृदय में भगवंतकी भक्ती (श्रद्धा) है। सो कवहू तो सुबुद्धिरूप होय कुबुद्धिको विनाश करे है अर कबहू या भगवंतकी भक्तिही | निर्मल ज्योतिरूप होय के अंतरंगविषे जाग्रत करे है । अर कवहू या भक्ती दयालरूप होयके चित्तकं दयारूप करे है अर कवहू या भक्ति परमात्मा के अनुभवमें लालसारूप होय ठहरने
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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