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________________ ताते विषय कषायसों, फेरि सुमनकी वाणि। शुद्धातम अनुभौ विषें, कीजे अविचल आणि ॥५२॥ अर्थ - जो मन विषय अर कषायमें प्रवर्ते है सो चंचल है । अर जो मन ध्यानके विचारमें प्रवर्ते |है सो अविचल है ॥ ५१ ॥ ताते मनके बाणीकूं विषय कषायते निकालो । अर शुद्ध आत्मानुभवमें लगायके अविचल करो ॥ ५२ ॥ ॥ अव आत्मानुभवमें क्या विचार करना सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ . अलख अमूरति अरूपी अविनाशी अज, निराधार निगम निरंजन निरंध है ॥ नानारूप भेष धरे भेषको न लेश धरे, चेतन प्रदेश धरे चैतन्यका खंध है | मोह घरे मोहीसो विराजे तामें तोहीसो, न मोहीसो न तोहीसों न रागी निरबंध है ॥ ऐसो चिदानंद याहि घटमें निकट तेरे, ताहि तूं विचार मन और सब धंध है || ५३|| ✓ अर्थ — यह आत्मा अलक्ष है अमूर्ति है अरूपी है अविनाशी है अर अजन्म है, निराधार है ज्ञानी है कर्मरहित है अर अखंड है । व्यवहारतें देखिये तो नाना प्रकारका भेप धरे है पण निश्चयतें देखि - ये तो भेषका लेश नही है, चैतन्यके प्रदेशकूं धारण करे है तार्ते चैतन्यका पुंज है। अर यह आत्मा मोहकूं धरे जब मोही हो रहे है अर मनकूं धरे जब मनरूप होय है, पण निश्चयतें देखिये तो मोहरूप नही है अर मनरूपभी नही है ऐसा विरागी अर निर्बंध है । अरे मन ? जहां तूं रहे है तहांही तेरे निकट ए आत्मा रहे है, अरे मन ? तूं ऐसाही आत्माका विचार कर ( सोही अनुभव है ) और सब इंद ( दूजारूप ) है ॥ ५३ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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