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________________ - -- ROSARIO STORICORROSIOCESIGGIES ॥ अव आत्माकी शुद्ध चाल कहे है ॥ सवैया २३ सा ॥जो जगको करणी सब ठानत, जो जग जानत जोवत जोई ॥ देह प्रमाण 4 देहसुं दूसरो, देह अचेतन चेतन सोई ॥ देह घरे प्रभु देहसुं भिन्न, रहे परछन्न लखे नहि कोई ॥ लक्षण वेदि विचक्षण बूझत, अक्षनसों परतक्ष न होई ॥ ३६ ॥ अर्थ जो इस जगतकी समस्त करणी ( चतुर्गतीमें गमनादि ) है सो करे है, अर जो जगतकुं| जाणे है अर देखेहू है। जो अपने देह प्रमाण है परंतु देहते दूजा है, देह अचेतन (ज्ञानशून्य ) है | अर आत्मा है सो चेतन ( ज्ञानवान ) है । देह रूपी है अर प्रभू (आत्मा) अरूपी है, आत्मा देह धिरे है परंतु देहसे भिन्न है ढकि रहे है इसकूँ कोई देखे नही । इस आत्माके जे लक्षण हैं तिस ||२|| लक्षणकू जाणि ज्ञानी मनुष्य आत्माकू ऊलखे है, पण नेत्र इंद्रियते प्रत्यक्ष दृग्गोचर नहि होय ॥३६ ॥ ॥ अव देहकी चाल कहे है ॥ सवैया २३ सा ॥देह अचेतन प्रेत दरी रज, रेत भरी मल खेतकि क्यारी ॥ व्याधीकि पोट आराधीकि ओट, उपाधीकि जोट समाधिसों न्यारी॥ रे जिय देह करे सुख हानि, इते पर ती तोहि लागत प्यारी॥ देह तो तोहि तजेगि निदान पैं, तूंहि तजे क्युं न देहकि प्यारी ॥ ३७॥ 50 अर्थ-देह है सो प्रेतवत् अचेतन है तथा रक्त अर रेतकी भरी गुफा है, अर मल मूत्र उपजनेकी । खेतकी वाडी है । रोगकी पोटडी है अर आत्माकू छुपावने• आगळ है, क्लेशकी झुंड है असमाधानी ARRASSARASTRALIAMGAGAR
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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