SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय- ॥७१॥ पुद्गलद्रव्य है, तिन पुद्गलके ममतासे मोहरूप मदिराका उन्मत्तपणा होय है । अर जब भेदज्ञान दृष्टीसे हैं सार. । मूल जीववस्तुका विचार कीजे तो, अवाच्य ( वचन गोचन नही ऐसे) सत्यार्थ सुखशांतिरूप शुद्ध र आत्माही भासे है ॥ ३३ ॥ ॥ अब वस्तुके संगतसे स्वभावमें फेर पडे सो नदीके प्रवाहका दृष्टांत देयके कहे है ॥ ३१ सा ॥ जैसे महि मंडलमें नदीको प्रवाह एक, ताहिमें अनेक भांति नीरकी ढरनि है ॥ पाथरको जोर तहांधारकी मरोर होत, कांकरकी खानि तहां झागकी झरनि है ॥ हूँ पौनकी झकोर तहां चंचल तरंग ऊंठे, भूमिकी निचान तहां भोरकी परनि है ॥ है ऐसे एक आतमा अनंत रस पुदगल, दूहुके संयोगमें विभावकी भरनि है ॥ ३४ ॥ अर्थ-जैसे पृथ्वी उपर नदीका प्रवाह एकरूप है, पण उस प्रवाहमें पाणीका बहना अनेक प्रकार है। जहां मोठा मोठा पाषाण आडो होय तहां पाणीके धारकू मोड पडे है, अर जहां कांकरी बहुत है होय तहां पाणीमें झागकी भभकी ऊठे है । जहां पवनकी झकोर लाग है तहां पाणीमें चंचल तरंग ६ । ऊठे है, अर जहां जमीन नीची है तहां भोर फिरे है । तैसेही एक आत्मद्रव्य है परंतु अनंत रसरूप P पुद्गलद्रव्य है, इन पुद्गलके संयोगते आत्मामें राग द्वेषादिक विभावकी भरणी होय है ॥ ३४ ॥ ॥अब आत्मा अर देह एक हो रह्या है पण लक्षण जुदा जुदा है सो कहे है ॥ दोहा ॥चेतन लक्षण आतमा, जड़ लक्षण तन जाल। तनकी ममता त्यागिके, लीजे चेतन चाल ॥३५॥ ___ अर्थ-आत्माका लक्षण चेतन है, अर शरीरका लक्षण जड है । ताते शरीरकी ममता छोडिके 8 ॥७१॥ आत्माकी चाल जो शुद्ध ज्ञान है सो ग्रहण कर लीजे ॥ ३५॥ CRICROGRESARIAGGARREIGNAGARIOREIGNERGA
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy