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नेम विना न लहे निहचे पद, प्रेम विना रस रीति न बूझे ॥ ध्यान विना न थंभे मनकी गति, ज्ञान विना शिवपंथ न सूझे ॥ २३ ॥ अर्थ-अब इहां दृष्टांत बतावे है की जैसे कार्य विना संसारी जीव उद्यम करे नही, अर लोक लाज विना रण संग्राममें कोई झूझे नहीं । मनुष्यदेह धारण करे विना मोक्षमार्ग सधे नही अर शीत तो स्वभाव धरे विना सत्यका मिलाप होय नही । संयम ( दीक्षा) धारे विना मोक्षपद मिले नही, अर प्रेम विना आनंद रस उपजे नही। ध्यान विना मनकी गति थंभे नही, तैसे ज्ञान विना मोक्षमार्ग ( आत्मानुभव ) सूझे नहीं ॥ २३ ॥
॥ सवैया २३ सा ॥ज्ञान उदै जिन्हके घट अंतर, ज्योति जगी मति होत न मैली ॥ बाहिज दृष्टि मिटी जिन्हके हिय, आतम ध्यानकला विधि फैली ॥ जे जड चेतन भिन्न लखेसों, विवेक लिये परखे गुण थैली ॥
ते जगमें परमारथ जानि,गहे रुचि मानि अध्यातम सैली ॥२४॥ अर्थ-जिन्हके हृदयमें सम्यग्ज्ञानका उदय हुवा है, तिन्हकी आत्मज्योती जाग्रत रहके बुद्धि मलीन नहि होय है । तथा तिनका देहसे ममत्व छूटके हृदयमें आत्मध्यानका विस्तार होय है। ज्ञानी है ते देहळू अर चेतनकू भिन्नभिन्न जाने है अर देहके तथा चेतनके गुणकी परीक्षा करे है। अर रत्नत्रयकू जानि तिनकुं रुचिसे अंगिकार करे है तथा अध्यात्म सैली (आत्मानुभव )कू मान्यता करे है ऐसे ज्ञानकी महिमा है ॥.२४ ॥ .
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