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________________ समय ॥ ५२ ॥ इत्यादिक जीवनिकों सर्वथा मुकति नांहि, फीरे जगमांहि ज्यों वयारके वघुले है ॥ जीन्हके हिये में ज्ञान तिन्हहीको निरवाण, करमके करतार भरममें भूले हैं ॥ २० ॥ अर्थ — केई क्रूरपरिणामी शरीरकूं नाना प्रकार कष्ट सहन करे है अर पंचाग्नि तप करिके शरीरकूं दग्ध करे है, तथा केई धूम्रपान करे है अर केई नीचा मुख ऊपर पग करि झूले है । केई पंचमहाव्रत धारण करि- तपश्चरणादिक क्रियामें मग्न रहे है, तथा परिषहार्दिक सहन करे है परंतु ज्ञान विना परालके घासके पूले समान निःसार है । इत्यादिककूं ज्ञानविना सर्वथा मुक्ति नहि है, ते अज्ञानी जगतमें चतुः गतीविषै जन्म मरण करते फिरे है जैसे पवनका बभूला नीचा उंचा फिरे है कहां ठिकाणा नही पावे तैसे । अर जिन्हके हृदयमें सम्यक्ज्ञान है तिन्हहीकूं निर्वाण है, अर जे केवळ क्रिया करणारे है भ्रममें भूले है ॥ २०॥ लीन भयो व्यवहार में, उक्ति न उपजे कोय । दीन भयो प्रभुपद जपे, मुक्ति कहाते होय ॥२१॥ प्रभु सुमरो पूजा पढो, करो विविध व्यवहार । मोक्ष स्वरूपी आतमा, ज्ञानगम्य निरधार ||२२|| अर्थ — जो क्रियामें मग्न हुवा है तिसकूं निज परका भेदरूप ज्ञान नहि होय है । अर दीन होय प्रभुपद ( मुक्तिपद ) की इच्छा करे है पण आत्मानुभव विना मुक्ति कहाते होय ? ॥ २१ ॥ प्रभूका स्मरण करो, पूजा करो, खुति पढो अथवा औरहूं नाना प्रकार चारित्र करो । परंतु मोक्ष स्वरूपी आत्माका अनुभव ज्ञानके आधीन है ॥ २२ ॥ ॥ सवैया २३ सा ॥— काजविना न करे जिय उद्यम, लाज विना रण मांहि न झूझे ॥ डील विना न सघे परमारथ, सील विना सतसो न अरूझे ॥ सार अ० ७ 114311
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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