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________________ हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये अपील " तन सो धन सो मन वच क्रम सो जो आरज हितकारी । स्वर्गादपि गरीयसी जिनकी भारत मातु पियारी ॥ रचन भारती भवन बनावन अथवा जन मन भावन । विश्वविदित हिन्दू - विद्यालय हिन्दू-गुन प्रगटावन || प्रान्त प्रान्त अरु नगर-नगर सो धनी गुनी जन भेटत 1 वित अनुसार प्रजा का राजा सब सो दान समेटत || पालन निज कर्तव्य, आश करि, अति उमग सो छाये । सब प्रकार प्रिय पूज्य अतिथि ये नगर आपके आये ॥ उपजे या कुल शिव दधीच हरिचन्द आदि से दानी । भुवि विश्रुत मोरध्वज नृप से जग जिन कहति कहानी || ता आरज हिन्दू-कुल के तुम चूत उचित समय यह उचित भाँति सो निज ध्यान पूर्वक यदि सोचो तो जो तुम याही मे तुव सब बिधि स्वास्थ याही मे ऋषि-मुनि की सन्तान उठो अब देखी भयो अपनी दशा मिलाय और जातिन सो जग मे सपूत कहाओ । कर्तव्य निभाओ || याहि यथारथ । परमारथ ॥ सबेरो । हेरो ॥ भारत । आरत ।। नाही । रहयो आपको वही हाय अति सभ्य समाज सिरोमनि पहिले विद्या बिन जल-हीन मीन सम प्रकृति - प्रसाद सुलभ सब याको पै चितवत जासो औरन को मुख, दुख जा कारन निज वृद्ध भारती माकी सेवा कीजै । तन मन धन सो याहि पुष्ट करि जग ये सुन्दर आदरश विराजत प्रियतम सब को जो प्रिय काज ताहि सब पूरन कृपा कटाच्छ- कोरही सो जो सारि सकत सब काजा । अहो भाग्य प्रिय बन्धु तिहारे द्वार पधारे दुर्लभ यश लीजै ॥ इनहि निहारो । भाँति सँवारो ॥ राजा ॥ बिद्या - बल भोगत जगमाँही ॥ ५३
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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