SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० ५० सत्यनारायण कविरत्न । सम्भवत इन्ही पादरी साहब की पढाई के विषय मे श्रीसत्य भक्तजी ने एक घटना "विद्यार्थी' मे लिखी थी, वह यह है--एक अग्रेजी पादरी आपसे हिन्दी पढता था। उसकी पढाई मे तुलसीकृत रामायण का रामस्वयबरवाला अग भी था । जब पढ़ते-पढते वह धनुष-भंग का वर्णन समाप्त कर चुका, और उसके पश्चात् उसने “त्रिभुवन घोर कठोर' वाला छन्द पढा तब उसने जिज्ञासा की कि अब तक तो इसमे बराबर दोहा और चौपाई आते रहे, अब क्या कारण है कि यह नवीन ढङ्ग का छन्द लिखा गया । इस अनोखे प्रश्न को सुनकर एक बार तो सत्यनाराणजी चकरा गये और चकराने की बात भी थी। पर धन्य है उनकी बुद्धि को, जिसने तुरन्त ही एक विचित्र उत्तर सोच निकाला। आपने कहा--- 'धनुष टूटने के पहले सब लोगो के विचार भिन्न-भिन्न थे । जनक धनुष न टूटने से सीता के अविवाहित रहने की बात सोच कर घबरा रहे थे। सीताजी की माँ रामचन्द्रजी के कोमल शरीर को देखकर उनसे धनुप का टूटना असम्भव सगझ रही थी । स्वयं सीताजी रामचन्द्रजी द्वारा धनुष टूटने की प्रार्थना ईश्वर से कर रही थी। राजा लोगो को खयाल था कि अब धनुष को कोई नहीं तोड़ सकेगा । इसी प्रकार जनता के चित्त में नाना प्रकार के विचार उत्पन्न हो रहे थे । पर ज्यो ही रामचन्द्रजी ने धनुष तोड़ा कि सबके विचार बदल गये । इसीलिये सबके विचारों को बदला हुआ देखकर कवि ने भी अपनी छन्द-प्रणाली भी बदल दी और अपने विचारो को एक नूतन छन्द में प्रकट कर दिया ! पादरी साहब यह सुनकर बड़े खुश हुए। सेण्टजान्स कालेज में अध्ययन सत्यनारायणजी कई वर्षों तक सेण्टजान्स कालेज में पढ़े थे । जब कभी कोई अध्यापक कालेज छोड़कर जाता था तो उसके लिए अभिनन्दन-पत्र वैयार करना सत्यनारायण का ही कर्तव्य-सा हो गया था। सच तो यह है कि कालेज छोडने के बाद भी जबतक वे जीवित रहे, इस कर्तव्य से उनका पीछा नहीं छुटा । कही किसी स्कूल या कालेज से कोई शिक्षक या अध्यापक
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy