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________________ १९० पं० सत्यनारायण कविरत्न पाठ होने लगा तो हम भी जाग गये । उन प्रतिनिधियो के चले जाने के बाद पडितजी ने हंसते हुए 'कविता कुत्ती' को फटकारने की यह घटना हमे सुनाई। एक बार आषाढ़ की पूर्णिमा पर मैने उनसे बहुत आग्रह किया कि आप गोबर्द्धन मे गङ्गा स्नान के लिये मेरे साथ चलिये। अधिकारी जगन्नाथ दास भी हमारे साथ जाने को राजी हुए; पर अन्त मे ये किसी कारण से न जा सके और मै तथा पडितजी ही चल पड़े। उस समय आपने अधिकारीजी के विषय मे एक मजेदार पद्य लिखा था । वह यह था "तुम्हे शतशः धिकार । तिरस्कार के योग्य आप हो अबसे सकल प्रकार ॥ इक्के को छुड़वाया हमसे देकर धोखा भारी । प्रण पूरा न किया पुनि तुमने इसी योग्य अधिकारी॥ देकर हमको धोखा ऐसा क्या फाइदा उठाया। वहाँ ठहर क्या अडा सेया कैसा चित भरमाया !! पुण्यतीर्थ को छोड़ वृथा ही कोरा क्लेश कमाया । चमचीचड़ चमगद्दड़ तुमने इसको वृथा सताया ।। कारण लिखिये ठीक अगर होक्षमा-प्राप्ति की आशा। नहि तो रसिया गाते फिरिये लिये हाथ मे ताशा ।।" हम लोग रात को मथुरा में भरतपुर की विकालत में ठहरे और सबेरे ही स्नानकर गोबर्द्धन चल दिये । वहा पहुँचकर पंडितजी ने पुनः स्नान किया और परिक्रमा करने के पश्चात् हम लोगो ने गिरिराज के दर्शन किये। मेरे पिताजी ने पंडितजी से कहा था कि वे गिरिराज महाराज से प्रार्थना करे तथा इस अवसर पर प्रतिवर्ष वहाँ आकर दर्शन और परिक्रमा करे तो उनका दमा जाता रहेगा। पंडितजी ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ गिरिराज के दर्शन कर यही प्रार्थना की और इसके बाद हम लोग घर लौटे । घर जाकर मेरी माताजी के बड़े आग्रह पर पंडितजी
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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