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________________ १८८ पं० सत्यनारायण कविरत्न जाती थी। किन्तु सबसे बढकर आपका कविता पढने का ढंग अपने निज का और आकर्षक था । आपकी कविता आपके मुख से ही सुनने पर उसका आनन्द कई गुणा अधिक हो जाता था । आपको कविता सच्चे हृदय मे निकलती थी, इसीलिये हृदय मे स्थान कर लेती थी।" श्रीयुत शालग्राम वर्मा (अलीगढ) 'कविरत्न पडित सत्यनारायणजी से कई अवसरो पर साक्षात् कार हो जाने के पश्चात् १९११ मे एक बार प० बदरीनाथ भट्ट के यहाँ मेरा उनसे पूर्ण परिचय हुआ। इसी दिन से हम लोग एक-दूसरे को अधिक जानने की चेष्टा करने लगे। प्राय शाम को जब मै, कुंवर नारायणसिह तथा ५० बदरीनाथ भट्ट टहलने जाते तोपडितजी की तथा ब्रजभाषा के अन्य कवियों की कविताओ की हास्योत्पादक समालोचना किया करते थे। पर जैसेजैसे पंडितजी की कविताएं मै अधिक सुनने लगा मैं उस ओर आकर्षित होने लगा और कुछ दिनों में इस ठठोल-मंडली का उदासीन मेम्बर रहा। अब भट्टजी की वर्षा मुझ पर भी होने लगी और मै सत्यनारायणजी का साथी बताया जाने लगा। इसी प्रकार कुछ दिन हुए थे कि पंडितजी को दमा का रोग हो गया और वह बड़ी भयानक अवस्था पर पहुँच गया। कभी-कभी हम लोग धाधूपुर भी जाते थे। पडितजी के अच्छे होजाने पर हम लोगो ने धाँधूपुर जाना कम कर दिया। इसके पश्चात् जब उनका उत्तर रामचरित भट्टजी के प्रस में छपने लगा तो स्वयं दोपहर को भट्टजी के यहाँ आने लगे। इन दिनों वे प्राय घोड़े पर छाता लगाकर आया करते थे और हम लोग उनके घोड़े पर अनेक हास्योत्पादक तुकबन्दियाँ किया करते थे। 'खड़ी बोली' और 'पड़ी बोली' की खूब भरमार होती थी। भैया सत्यनारायण की सौम्यमूर्ति छोटे-से लाल टट्ट पर विराजमान तथा सफेद कपड़ा चढा पुराने ढंग का छाता लगाये हुए इस समय भी मेरे
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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