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________________ १६२ प० सत्यनारायण कविरत्न अभिनव जग जागृति भावमय कर वीणा झकारती। अस श्रुति-पाणी हो सदय सत वरदा वाणी, भारती ॥ श्रीयुत राधाचरणजी गोस्वामी ने अपने पुत्र के विवाहोत्सव के लिये जो पत्र भेजा था, उसमे लिखा था"सवत् वसु रस अङ्क बिधि, माघव हरि दिन श्याम । करिके कृपा बरात मे; __चलिये मथुराधाम ॥ यह पत्र २६ अप्रैल सन् १९११ को; जिस दिन बरात जानेवाली थी, उसी दिन, पण्डितजी को मिला । आपने उत्तर दिया--- सुखद पत्र मिल्यो प्रिय आपको-- अवसि, किन्तु लह्यो दिन के दिना। सिर धरो स्वपदाम्बुज रेणु को, अस कहाँ मम मजुल भाग हैं। यह बड़े उरझे गृह-कार्य है, न अवकाश प्रभो यहि हेतु सों। सदय मो अपराध क्षमा करो, दिन गये कछु श्रीपद पर्सिहो । पंडित पद्मसिंहजी शर्मा ने सत्यनारायण को बहुत दिनो से कोई चिट्ठी नही भेजी थी। इसकी शिकायत आपने इन शब्दों में की थी पदम, तब हृदय बड़ो बेपीर । सोचत ना यह भंवर बिचारो कब की अहहि अधीर ।। रुचिर अधर दल तनिक न खोलत का अपराध विचारयो । पुजवत साध न याके मनकी टेरि-टेरि ये हारयो । कोमल परम कहावत तोऊ कठिन भये अब ऐसे । काऊ को दुख-दरद न मानत जानत ना कछ जैसे ।।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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