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गृह-जीवन
"श्रीमान् मान्यवर पंडितजी,
नमस्ते । आप के ३ पत्र आये। वृत्त ज्ञात हुआ और पढकर चित्त अति प्रसन्न हुआ कि आप कुशलपूर्वक घर पर पहुँच गये। आपका प्रेषित 'उत्तररामचरित्र' नामक पुस्तक प्राप्त हुआ। आप की इस कृपा के लिये धन्यवाद है । अपराध तो अपराधियो से हुआ करते है । आपके पास तो अपराध की हवा भी नहीं निकल सकती। हम ही अपराधी है कि आपके उत्तर मे विलम्ब हुआ। क्षमा करे । शेष कुशल है ।
आपकी भगिनी
आमीदिनी पंडितजी ने फिर भी सावित्रीजी के नाम आने के लिये पत्र भेजा। उसके उत्तर मे २७ अप्रैल को श्रीमती आमोदिनी ने पंडितजी को लिखा"आपको किसी प्रकार घबराने की जरूरत नहीं है। ये भी आपका मकान है। और आने की बाबत यह है कि ये आपका मकान है । आप जब चाहे तब आ सकते है। बाकी उनके आने की बात की ये है कि जब आने को वे लिख देगी तभी आवेगी और आप यहाँ से किसी प्रकार की इन्तजारी न करें।"
२४ मई १९१६ को सत्यनारायणजी को निम्नलिखित तार मिला“Don't Come useless cant go.
--Sawitri" अर्थात् “मत आओ। निरर्थक है। नही जा सकती।" ।
-सावित्री" २६ मई को श्रीमतीजी ने पत्र भी भेजा । उसमे लिखा था :
"पंडितजी, आपका पत्र मिला। उसके उत्तर मे मैने तार दिया है। शायद उससे कुछ हाल मालूम कर लिया होगा। अब पत्र भी इस विषय का भेजा जाता है। जब तक खुद मेरी ही इच्छा आने की न हो, आपका