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________________ गृह-जीवन ११७ अधिक सरस हो जायगा। उस समय कोरे सत्य ग्राम के बासी" को इस बात का पता नही था कि 'शिक्षा' और 'सहृदयता दो. भिन्न-भिन्न वस्तुएँ है। महीने भर के अन्दर ही सत्यनारायणजी को पता लग गया कि शिक्षित मनुष्य जितना हृदयहीन हो सकता है उतना अशिक्षित नहीं हो सकता। धाँधूपुर पहुँचने के कुछ ही दिन वाद श्रीमती सावित्री देवीजी ने कहना प्रारम्भ किया-"मुझे अपनी सहेली "आमोक्नी"* के पास “रविनगर" पहुँचा दो। सत्यनारायणजी ने बहुत समझाया लेकिन श्रीमतीजी न मानी। ७ अप्रैल १९१६ को श्रीमतीजी के नाम "आमोदिनी" का निम्नलिखित पत्र आया। ५ अप्रेल १९१६ श्रीमानजी तथा श्रीमती बहिनजी, नमस्ते आपके ४ ता० को आने के कई पत्र मुझको मिले और एक ६ तारीख को आने का पत्र मुझको मिला जिसमें यह लिखा हुआ था कि मै अव्वल तो चार तारीख को जरूर-जरूर आऊँगी, नहीं तो ६ ता० को जरूर जरूर आऊँगी । कल चार तारीख को गाड़ी स्टेशन पर गई। मुरादाबाद से जो दस बजे गाड़ी आती है, वह देखी। फिर ३ साढ़े तीन बजे जो गाड़ी आती है वह देखी। २ पैसे का टिकट लेकर प्लेटफार्म पर केशीराम ने हर एक गाड़ी में पुकारा । लेकिन फिर शाम के वक्त लाचार होकर चला आया। आपकी बहिन-आमोदिनी * असली नामों को न लिखकर हमने इंकल्पित नामों को ही लिखना उचित समझा है। --लेखक ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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