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________________ ७३ दुखियो की पुकार दुखियों की पुकार जगत मे किसे हमारी पीर । लज्जा शोक घृणा से निशिदिन बहै नयन से नीर ।। जो स्वारथ के कारण अन्धे उनकी कुछ न कहानी। हाँ । सो गये भारतवासी भी जो स्वदेश-अभिमानी ।। शत्रु मित्र सब खडे देखते अतिशय हमै दुखारी। हुआ बडा अपमान यहाँ पर मनुष्यता का भारी ॥ मिटी गुलामी प्रथा जगत से जिसको सुदया पाई। उसी ब्रिटिन की प्रजा मुफ्त मे ऐसी जाड सताई ।। जहाँ हुई दमयन्ती सीता सावित्री-सी नारी । पुण्य-सद्मिनी प्रेम-पद्मिनी आर्य मुखोज्ज्वल कारी ।। अबला निपट द्रौपदी ने भी रक्खा मान जहाँ का । दृढता के वश कोई कर सका उसका बाल न बॉका ॥ तह की पावन ललनाओ को दुष्ट बनावे दारा। कहाँ सदय गोपाल कृष्ण प्रिय अनुपम मित्र हमारा ॥ जो इस दुश्शासन के निरदय कर से हमै बचावै। जाती हुई लाजपति को जो सकरुण हृदय रखावै ।। किसे सुनावे ? कौन सुनेगा ? फूट फूट हम रोये । सद्गुण सदन मदन मोहन मोह न तुमको कह सोये ।। आत्म-मान का महल जगत मे दृग पसार कर देखा । नाथवान हम हा । अनाथ सम जी मे यही परेखा ॥ यह भारत मानापमान का प्रश्न उपस्थित भारी। इसके सुलझाने मे चहिये शक्ति लगाना सारी॥
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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